एक वृक्ष कटा
साथ ही
कट गई
कई आशाएँ
कितने घोंसले
पक्षी निराधार
सहमी चहचहाहट
वो पत्तों की
सरसराहट
वो टहनियाँ
जिन पर
बाँधते थे कभी
सावन के झूले
बिन झूले सावन
कितना सूना
कटा वृक्ष
वर्षा कम
धरती सूखी
पड़ी दरारें
न वृक्ष
न झूला
न सावन ?
शुभा मेहता
17th , July ,2016
वाह....अतिसुन्दर लाजवाब।भाषा और शैली अद्भुत। अभिभूत हूँ तेरी प्रतिभा पर।
ReplyDeleteआभार ।
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Deleteअतिउत्तम शुभा जी । अभिनन्दन ।।।
ReplyDeleteधन्यवाद राजेश जी ।
ReplyDeleteVery nice dear sister
ReplyDeleteThanks bro
ReplyDeleteवो पत्तों की
ReplyDeleteसरसराहट
वो टहनियाँ
जिन पर
बाँधते थे कभी
बहुत उम्दा सृजन,,,, बधाई।
धन्यवाद संजय जी ।
Deleteधन्यवाद संजय जी ।
Deleteवाह बेहतरीन कविता प्रकृति के साथ और समाज के मुँह पे
ReplyDeleteकरारा तमाचा ।।
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteसुन्दर ! यथार्थपरक मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteवृक्षों का महत्त्व दिल को कचोटते,झकझोरते भावों से।
बधाई शुभा जी।
आभार ,रविन्द्र जी ।
Deleteपेड़ के माध्यम से गहरी बात कह दी आपने ...
ReplyDeleteकितना खिलवाड़ कर रहे हैं हम एक पेड़ काट कर ये पता नहि चलता ... लाजवाब रचना ...
बहुत बहुत धन्यवाद दिगंबर जी ।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ।
Deleteपेड़ों का महत्व बतलाती बहुत ही लाजबाब प्रस्तुति, शुभा जी।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी ।
Deleteअति सुन्दर और सटीक रचना ..👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
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