Tuesday, 18 October 2016

मेरा बचपन

   वो बस्ता लेकर भागना
    सखी -सहेलियों से
     कानाफूसियाँ
   भाग -दौड में
    चप्पल टूटना
     टूटी चप्पल जोडना
     नाश्ते के डब्बे
     कपडों पर स्याही के धब्बे
     माँ से छुपाना
     ओक लगाकर पानी पीना
     खेल की छुट्टी में
      बेतहाशा दौडना
      घुटनों को तोडना
       कपडों की बाँह से
      पसीना पोंछना
     किरायेकी साइकल  
    के लिए लडना -झगडना
    छुपन-छुपाई गिल्ली -डंडा
    सितौलिया , भागम भाग
     न ट्यूशन का टेंशन
   न पहला नंबर ही लाने का झंझट
कितना प्यारा था मेरा बचपन
       अब इस आधुनिकता की 
    दौड में कहाँ खो गया ये सब
   आज के बच्चों का तो
     जैसे छिन सा गया बचपन ।

                          शुभा मेहता
                      18th October 2016

11 comments:

  1. लिखती रहें । शुभकामनाएं ।

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    1. बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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    2. बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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  2. सच लिखा है ... अब नेट का जमाना है ... बसते के बोझ का ज़माना है ... वो बात कहाँ .... अच्छी रचना है ...

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    1. स्वागत है आपका मेरे ब्लोग पर । बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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    2. स्वागत है आपका मेरे ब्लोग पर । बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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  3. कितना प्यारा था मेरा बचपन
    अब इस आधुनिकता की
    दौड में कहाँ खो गया ये सब
    आज के बच्चों का तो
    जैसे छिन सा गया बचपन ।
    ...हमें भी यही लगता है
    बचपन बहुत पीछे छूट गया है ...

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    1. स्वागत है आपका मेरे ब्लोग पर। बहुत -बहुत आभारी हूँ ।

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    2. स्वागत है आपका मेरे ब्लोग पर। बहुत -बहुत आभारी हूँ ।

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  4. मैं स्कूल में टिकना ही नहीं चाहती थी
    पढ़ना नहीं सीखती जो तो आपका प्यारा लेखन कैसे पढ़ती मैं

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  5. बहुत -बहुत धन्यवाद विभा जी ।सही कहा आपने , पढना तो जरूरी है ।

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