Wednesday, 11 April 2018

डर...

डर , ये तो इक हिस्सा है
   जिंदगी का...
   कुछ खोने का .
कुछ न ,पाने का
  एक अहसास है
  जो सभी को होता है
  बहुत नोर्मल चीज है
   जिंदगी की
   डर , नकारात्मकता नही
   सभी को लगता है डर
    किसी न किसी चीज से
    और जो दावे करते है
   न डरने के ..
  कभी छोटी सी छिपकली
   देख जाते हैं डर ..।

शुभा मेहता.
   

9 comments:

  1. बहुत बढिया छोटी है पर तगड़ी है भाषा सरल और सशक्त ढेर ढेर आशिर्वाद और खूब सारा स्नेह प्यार 👏👏👏👏👏😘😘😘😘😘😊😊😊😊😊

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  2. निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीया देवी नागरानी जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद रितु जी ।

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  4. बहुत सुंदर..... गहरे सकारात्मक भाव लिए पंक्तियाँ ...

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    1. धन्यवाद संजय जी ।

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  5. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद ।

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  6. भावनात्मक
    अति सुंदर।

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