Wednesday, 30 January 2019

याद

  याद है तुम्हें जब पहली बार
   कंकू भरे पैरों से तुम आई थी घर में
  पायल की रुनझुन कितनी मनमोहक थी
   और तुम्हारे नाजुक से पैर
   मैं तो बस एकटक देखता ही रह गया ठगा -सा
    कितनी खूबसूरत थी तुम .....!
    याद है न तुम्हें वो लम्हें
      घर का हर कोना
      तुम्हारे आने से महक उठा था
       और मैं ,तुम्हें पाकर सातवें आसमान पर उड रहा
       समय बीता ...हमनें पाई -पाई जोडकर
      एक आशियाना बनाया
     "अपना घर".....
      याद है न ?
       अब डाइनिंग टेबल पर बैठने वाले
       हम चार लोग थे
       कितना अच्छा लगता था
        साथ बैठकर खाना ,बातें करना
        हँसना ,हँसाना ,रूठना ,मनाना
          बच्चों की बीमारी में
          रात-रात भर जागना ..
            उन्हें पढाना -लिखाना
            और ये सब करते -करते
            तुम्हारे कोमल पैरों की
             फटने लगी थी बिबाइयाँ
              और मैं बच्चों को अच्छा खिलानें और
              पढानें के चक्कर में
                लगा रहता दिन भर कामों में
                 हमारे लिए समय ही न रहा
                 याद है न तुम्हें ..
                   बोलो न ...
                  मैं भी कितना पागल हूँ
                  कभी तस्वीरेँ भी बोला करती हैं भला
                   वैसे अच्छा ही हुआ
                    तुम जल्दी चली गई
                     वरना सह न पाती
.                    आज डाइनिंग टेबल पर
                      मेरे लिए कोई कुर्सी खाली नहीं
                       "अपना घर"पराया सा हो गया ..।

         शुभा मेहता
        31st January ,2019
                        
         

                 

              

         

19 comments:

  1. Har lamha kured kured kar beete dino ki yaad dilata hai par tujhe kya hua kuch jyada hi udaaseen pal rha hoga jab ye likha kavita acchi hai aur tasveer tagne mein abhi bahut bahut der hai 👏👏👏👏😘😘😘😘😘😘😊😊😊😊😊

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ४ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. धन्यवाद ,श्वेता ।

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  3. बेहतरीन रचना सखी

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    1. बहुत आभार आपका सखी ।

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  4. बहुत मार्मिक ,परन्तु सत्य ,बहुत सुंदर रचना शुभा जी ,सादर स्नेह

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी ।

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  5. मैं भी कितना पागल हूँ
    कभी तस्वीरेँ भी बोला करती हैं भला
    जीवन का यह सफर भी कितना विचित्र है, जो छूट गये राह में उनकी यादों का बंद पिटारा रह रह कर खोलता भी रहता है। प्रणाम।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद । स्वागत है आपका मेरी अभिव्यक्ति पर 🙏

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  6. बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना....
    आज का कटु सत्य...बहुत सुन्दर।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी ।

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  7. तस्वीरें न बोलते हुए भी कितना कुछ कहती हैं ...
    यादों को जगा जाती हैं ... जो सहारा होता है जीवन का ...

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  8. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  9. जीवन की कड़वी सच्चाई व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना, शुभा दी।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति ।

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  10. कटु सत्य...बहुत सुन्दर
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  11. बहुत सुन्दर
    सादर

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