Tuesday, 11 June 2019

इंसानियत

इंसान ही मर चुका जब
कहाँ से आएगी इंसानियत ?
  हैवान बन गया वो
  हैवानियत ही हैवानियत ..
   गुड्डे -गुडि़या खेल -खिलौने
    खेलने थे जब ...
     नोंच -नोंच कर खा गए
      इंसान के खोल में
      गिद्ध ,चील ,कौवे
      कहाँ का इंसान
      और कहाँ की इंसानियत ।
     
    शुभा मेहता 12th,July 2019
  

23 comments:

  1. Wah ....... adbhut very powerful true depiction of today's humanity bahut bahut accha aur bahut dheron pyaar 😘😘😘😘😘😘👏👏👏👏👏💐💐💐💐💐👍👍👍👍

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  2. बेहतरीन रचना प्रिय सखी 👌

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    1. बहुत-बहुत आभार प्रिय सखी ।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 12/06/2019 की बुलेटिन, " १२ जून - विश्व बालश्रम दिवस और हम - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. बहुत-बहुत धन्यवाद शिवम जी ।

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  5. मर्मस्पर्शी रचना शुभा जी ! सुन्दर अभिव्यक्ति !

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद साधना जी ।

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यकि शुभा जी |

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आशा जी ।

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  7. सच है आज इन्सान नहीं हैवान रह गया है ... वहशीपन सवार है हर किसी पर ...
    कब ये सब रुकेगा ...
    मन की संवेदनाओं को लिखा है आपने ..

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद दिगंबर जी ।

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १७ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. धन्यवाद श्वेता ।

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  9. निशब्द ¡¡
    हर शब्द चीख कर स्वयं इंसानियत की पोल खोल रहा है।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय सखी ।

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  10. बेहतरीन अभिव्यक्ति शुभा जी

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी ।

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  11. सार्थक रचना

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  12. बिल्कुल सत्य लिखा है आपने।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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  13. कहाँ का इंसान
    और कहाँ की इंसानियत
    ...मर्मस्पर्शी रचना शुभा जी

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  14. हैवानियत की कलई खोलता गहरा तंज!!!

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