इंसान ही मर चुका जब
कहाँ से आएगी इंसानियत ?
हैवान बन गया वो
हैवानियत ही हैवानियत ..
गुड्डे -गुडि़या खेल -खिलौने
खेलने थे जब ...
नोंच -नोंच कर खा गए
इंसान के खोल में
गिद्ध ,चील ,कौवे
कहाँ का इंसान
और कहाँ की इंसानियत ।
शुभा मेहता 12th,July 2019
Wah ....... adbhut very powerful true depiction of today's humanity bahut bahut accha aur bahut dheron pyaar 😘😘😘😘😘😘👏👏👏👏👏💐💐💐💐💐👍👍👍👍
ReplyDelete,😊😊😊😊
Deleteबेहतरीन रचना प्रिय सखी 👌
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार प्रिय सखी ।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 12/06/2019 की बुलेटिन, " १२ जून - विश्व बालश्रम दिवस और हम - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद शिवम जी ।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना शुभा जी ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद साधना जी ।
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यकि शुभा जी |
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आशा जी ।
Deleteसच है आज इन्सान नहीं हैवान रह गया है ... वहशीपन सवार है हर किसी पर ...
ReplyDeleteकब ये सब रुकेगा ...
मन की संवेदनाओं को लिखा है आपने ..
बहुत-बहुत धन्यवाद दिगंबर जी ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१७ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
धन्यवाद श्वेता ।
Deleteनिशब्द ¡¡
ReplyDeleteहर शब्द चीख कर स्वयं इंसानियत की पोल खोल रहा है।
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय सखी ।
Deleteबेहतरीन अभिव्यक्ति शुभा जी
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी ।
Deleteसार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबिल्कुल सत्य लिखा है आपने।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
कहाँ का इंसान
ReplyDeleteऔर कहाँ की इंसानियत
...मर्मस्पर्शी रचना शुभा जी
हैवानियत की कलई खोलता गहरा तंज!!!
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