मेरा ये शहर
कभी गुलजा़र हुआ करता था
हर तरफ हुआ करती थी
ताजा हवा ...
जिसके झोंके से
मिलता था सुकून .
पेडों की शाखों पर
गाते थे पक्षी ..
आज देखो तो
बस धुआँ ही धुआँ
खाँसते लोग ...
प्रदूषण के मारे
बेहाल .......।
शुभा मेहता
26th Nov , 2019
Bahut sahi hai jab shaher bimar pradushan se toh shahervasi kaise bache rah skte hain rajnitigya apni apni rotiyan sekhne mein vyast aur janata hai toh rahe jab chunav aayenge thoda sa paisa thodi si sharab aur chand rurupa bas phir wapis denge inko ( janata) pradushan bahut sarthak kavita thode se shabd bhedi baan aur ban gyi kavita excellent likh khoob likh 💐💐💐😊😊😊
ReplyDelete😊😊😊😊
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 28 नवंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत-बहुत धन्यवाद रविन्द्र जी ।
Deleteसही कहा आपने। अभी स्थिति वाकई बहुत बुरी है।
ReplyDeleteअब सोचने समझने का समय जा चुका है....अब सिर्फ सुधार के लिए अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करना होगा।
धन्यवाद प्रकाश जी ।
Deleteइस स्थिति के लिए शायद हम भी जिम्मेवार हैं ... पर ये एक ऐसा कडुवा सच है जिससे निजात पानी होगी ... नहीं तो ये शहर छोड़ना होगा ... गहरे शब्द ...
ReplyDeleteधन्यवाद दिगंबर जी ।
Deleteबहुत सुन्दर शुभा जी !
ReplyDeleteअब तो हिमालय की चोटियों तक प्रदूषण का प्रकोप है. लेकिन सबसे भयावह है - मानसिक प्रदूषण ! एक बार यदि हम उस से मुक्ति पालें तो सब कुछ निर्मल हो सकता है.
धन्यवाद आदरणीय गोपेश जी ।
Deleteवाह !बेहतरीन सृजन सखी
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद सखी ।
Deleteसार्थक रचना प्रिय शुभा बहन | ये स्वच्छता से भरे शहरों को किसने प्रदुषण और कालिमा से भर दिया ? ये प्रश्न अनुत्तरित है | हार्दिक शुभकामनायें आपके लिए |
ReplyDeleteधन्यवाद सखी ।
Deleteसत्य
ReplyDeleteधन्यवाद नीलांश जी ।
Deleteलाजवाब अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद लोकेश जी ।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन सखी
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
Deleteसही कहा शुभा जी ,स्थिति बहुत भयावह होगई हैं ,सार्थक रचना ,सादर नमन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
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