मेरा काजल बह-बह जाए
कब से बैठी आस लगाए
बैरी पिया ना आए ....
सखी री ......
ना चिठिया ना कोई संदेसा
इतना काहे... तरसाए ---
सखी री ...
जाऊँ कहाँ कुछ समझ न आए
उन बिन चैन ना आए
सखी री .....
तारे गिनती रहूँ रात भर
चाँदनी अगन लगाए
सखी री ......
शुभा मेहता
27th ,March ,2020
Haaahaaaa poori lyricist ho gyi hai ab isi par tarj bna aur gaa bhi de taare ginti rahoon raat bhar chandani agan lagaye bairi piya gye pardes sakhi ri bahut badhiya fully romantic teri vidha se thoda bhinn par bahut acchi keep writing bahut bahut pyaar aur ashirwad 👏👏👏💐💐💐👍👍👍😊😊😊
ReplyDelete😊😊😊😊
Deleteफ़ोन, मोबाईल कुछ भी नहीं लग रहा क्या
ReplyDelete😊😊😊😊
Deleteनिर्मोही साजन ना जाने सखी
ReplyDeleteहिय की विरहा पीर
पल -पल छलके नैन गागरी
ना कोई आन बंधावे धीर !
हर नारी की यही व्यथा कथा है सखी !
थोड़ा लिखा पर खूब लिखा !
धन्यवाद प्रिय सखी ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
३० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता .
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद सर ।
Deleteछोटा पर मोहक हृदय तक उतरता सृजन ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर शुभा जी।
बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteहृदयस्पर्शी सृजन शुभा जी ,सादर नमन
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