Monday, 30 March 2020

नैया और पतवार

एक दिन छिड गई बहस 
 नैया और पतवार में ,
  नैया ने अभी-अभी ही 
  वृक्ष में से पाया था 
    रूप नया ...
     सुंदर रंगों से रंगी गई थी 
      सुन अपनी तारीफें 
       फूल गई थी कुछ गर्व से 
       पानी में अपना प्रतिबिंब देख 
        बढ गया और  अभिमान । 
        जैसे ही नाविक ने थामी पतवार 
         ये क्या ....इत्ती पुरानी  ,गंदी पतवार 
          नहीं ,नहीं मुझे नहीं चाहिये तुम्हारा साथ 
            पतवार धीरे से बोली 
             सुनो नैया बिन मेरे कैसे करोगी 
              सागर पार .......
                पर नैया को कहाँ कुछ सुनना था 
                बोली मैं तो चली लहरों के साथ 
                  कुछ दूर जाकर 
                   घबराई ,चिल्लाई 
                     सुनो पतवार 
                       आकर बचाओ
                       मेरा तुम्हारा तो सदा का है साथ 
                        तुम बिन नहीं होगी नैया पार ।

   शुभा मेहता 
31st , March ,2020
  

11 comments:

  1. Wah adbhut ahankar gart ki or badhata hai aur sajjanta vinamrata sadbuddhi patwaar aur naiyya dono ek doosre ke poorak hain phir kahe ka jhagda kahe ki vaimanasyata superb thoughts excellent expressions 💐💐💐👍👍👍😊😊😊

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  2. बहुत खूब।
    सच तो ये हैं कि इस जीवन में हमे जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती हैं उसको ही हम ओं आँकते हैं।
    बढ़िया रचना।
    आभार

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सर ।

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद ओंकार जी ।

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  4. कई बार ख़ुद का अभिमान सोचने नहीं देता पर सत्य कड़वा होता है ... वापस के आता है ... बहुत कुछ कहती रचना ...

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    1. धन्यवाद दिगंबर जी ।

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  5. जी बेटी , कुछ देर पढ़ते रहे ... अच्छा लिखती हैं ... स्नेह , जीती रहें

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