नैया और पतवार में ,
नैया ने अभी-अभी ही
वृक्ष में से पाया था
रूप नया ...
सुंदर रंगों से रंगी गई थी
सुन अपनी तारीफें
फूल गई थी कुछ गर्व से
पानी में अपना प्रतिबिंब देख
बढ गया और अभिमान ।
जैसे ही नाविक ने थामी पतवार
ये क्या ....इत्ती पुरानी ,गंदी पतवार
नहीं ,नहीं मुझे नहीं चाहिये तुम्हारा साथ
पतवार धीरे से बोली
सुनो नैया बिन मेरे कैसे करोगी
सागर पार .......
पर नैया को कहाँ कुछ सुनना था
बोली मैं तो चली लहरों के साथ
कुछ दूर जाकर
घबराई ,चिल्लाई
सुनो पतवार
आकर बचाओ
मेरा तुम्हारा तो सदा का है साथ
तुम बिन नहीं होगी नैया पार ।
शुभा मेहता
31st , March ,2020
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद सर ।
DeleteWah adbhut ahankar gart ki or badhata hai aur sajjanta vinamrata sadbuddhi patwaar aur naiyya dono ek doosre ke poorak hain phir kahe ka jhagda kahe ki vaimanasyata superb thoughts excellent expressions 💐💐💐👍👍👍😊😊😊
ReplyDelete😊😊😊😊
Deleteबहुत खूब।
ReplyDeleteसच तो ये हैं कि इस जीवन में हमे जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती हैं उसको ही हम ओं आँकते हैं।
बढ़िया रचना।
आभार
बहुत-बहुत धन्यवाद सर ।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteकई बार ख़ुद का अभिमान सोचने नहीं देता पर सत्य कड़वा होता है ... वापस के आता है ... बहुत कुछ कहती रचना ...
ReplyDeleteधन्यवाद दिगंबर जी ।
Deleteजी बेटी , कुछ देर पढ़ते रहे ... अच्छा लिखती हैं ... स्नेह , जीती रहें
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