कहते हैं.हाँ हैं हम
स्वतंत्र देश के
स्वतंत्र नागरिक ..
और हैं भी ....।
पर हमनें तो
इसका ऐसा
किया दुरूपयोग ..
सारी प्रकृति दर्द से
कराह उठी ..
किसनें दी हमें
स्वतंत्रता जंगलों को
उजाडने की ,नदियों को दूषित करनें की ,
पर्यावरण बिगाड़ने की ,
जहाँ मरजी कूडों का ढेर लगाने की ,
हे मानव ,ये जो किया तूने
खिलवाड़ माँ प्रकृति के साथ ,
कितना सहती वो भी आखिर ..
सीमा होती है न ,हर बात की
तो अब ले भुगत ,
अपने कर्मों का फल ,
त्याग अब तो अपना अहम्...
मैं , मानव हूँ बडा शक्तिशाली ..
कुछ भी कर सकता हूँ
छोड इस सोच को अब ..।
प्रेम कर माँ प्रकृति से
ध्यान रख ,कर जतन
देखना फिर माँ भी
जल्दी ही ..
बैठाएगी फिर से
तुझे अपनी गोद में
झुलाएगी झूला भी ......।
शुभा मेहता
12 June ,2020
वाह दी बहुत सुंदर विचार।
ReplyDeleteसटीक और सार्थक सृजन दी।
सादर।
धन्यवाद श्वेता ।
Deleteबहुत ही सटीक सार्थक और आज प्रकृति से किए खिलवाड़ की सजा भुगत रहे हैं
ReplyDeleteइस दयनीय परिस्थिति के जिम्मेदार हम मानव नहीं मैं कहूँगा दानव ही हैंं
वाह बहन खुश रह सदा मुस्कुराती रहे 👏👏👏😘😘😘
😊😊😊😊
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता ।
ReplyDeleteशुभा दी, बहुत सुंदर और विचारणीय पोस्ट।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति ।
Deleteसार्थक सरोकारों को स्वर देती कविता। बधाई और आभार!!
ReplyDeleteधन्यवाद विश्वमोहन जी ।
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय ।
Deleteकाश इंसान ऐसा करे और समझे की प्राकृति है तो जीवन है अन्यथा जीवन का संकट भी खड़ा हो जायेगा ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक .. भावपूर्ण रचना है ...
धन्यवाद दिगंबर जी ।
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद सर ।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय ।
Deleteहे मानव ,ये जो किया तूने
ReplyDeleteखिलवाड़ माँ प्रकृति के साथ ,
कितना सहती वो भी आखिर ..
सीमा होती है न ,हर बात की
तो अब ले भुगत ,
अपने कर्मों का फल ,
त्याग अब तो अपना अहम्...
मैं , मानव हूँ बडा शक्तिशाली ..
कुछ भी कर सकता हूँ
छोड इस सोच को अब ..।
प्रेम कर माँ प्रकृति से
ध्यान रख ,कर जतन
देखना फिर माँ भी
जल्दी ही ..
बैठाएगी फिर से
तुझे अपनी गोद में
झुलाएगी झूला भी ......।
बहुत ही सुंदर रचना
धन्यवाद ज्योति जी ।
Deleteअति उत्तम रचना
ReplyDeleteधन्यवाद भाई ।
Deleteधन्यवाद यशोदा जी ।
ReplyDeleteकिसनें दी हमें
ReplyDeleteस्वतंत्रता जंगलों को
उजाडने की ,नदियों को दूषित करनें की ,
पर्यावरण बिगाड़ने की ,
जहाँ मरजी कूडों का ढेर लगाने की ,
हे मानव ,ये जो किया तूने
खिलवाड़ माँ प्रकृति के साथ ,
कितना सहती वो भी आखिर ..
सीमा होती है न ,हर बात की
तो अब ले भुगत ,
अपने कर्मों का फल ,
बिल्कुल सटीक ...ये कर्मों का ही फल है जो आज पूरा विश्व झेल रहा है...
बहुत सुन्दर सार्थक सृजन।
पर्यावरण संरक्षण पर सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना पर्यावरण पर।आदरणीया
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक सृजन सखी
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