Friday, 4 June 2021

गुफ्तुगू बूढे बरगद से ..

वो बूढा़ बरगद 
ना जाने कितने बर्षों से 
  खडा है ...
  मुझे बहुत पसंद है 
  उसकी डालों पर बैठी 
   चिडियों की चहचहाहट 
    उसकी जटाओं से ,
  लटककर झूलना 
     बचपन में यही खेला करते थे 
      छुपाछुपी ..........
      आज भी जब भी 
       गुजरती हूँ यहाँ से ,
        कुछ देर रुकती हूँ 
        अच्छा लगता है 
         लगता है मानों वृक्ष की डालियाँ 
         करीब आकर कहना चाहती हैं कुछ 
          कान में .........लगता है जैसे कह रही हों 
            देख .सदियों से खडा हूँ यहाँ 
             अकेला .......
             बहुत कुछ देखा है इन बूढी आँखों नें 
               खेलते बच्चे मेरे चारो ओर, 
             पक्षियों का कलरव 
          मोर का नर्तन ..।
फिर वो बूढा़ बरगद 
धीर -से फुसफुसाया मेरे कान में 
  देखना ..कल आएगे 
    कुछ नेता ,कुछ अभिनेता 
     कुछ तथकथित समाजसेवक 
      लेकर कुछ पौधे ,फावडे 
         साथ में कुछ पत्रकार और 
          फोटोग्राफर भी .....
          लगाएंगे कुछ वृक्ष 
           ढेरों फोटो लिए जाएंगे 
            अखबारों मे छपेगें किस्से 
            वृक्षारोपण के .......
            उसके बाद कोई ना झाँकेगा 
             कि इन लगाए गए वृक्षों का 
             क्या भविष्य हुआ ....।
                

शुभा मेहता 
4th ,June ,2021
              

              
          
           
               
                   
                  
         
  

                
      
           

19 comments:

  1. विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर एक बेहतरीन अभिव्यक्ति जिसके हर शब्द कटु सत्य का चेहरा है।
    आज की चिंतनीय स्थिति और प्रकृति की बदहाली के लिए हमसब बराबरी के जिम्मेदार हैं।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय श्वेता । आपको देखकर बहुत खुशी हुई ।

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  2. लगाएंगे कुछ वृक्ष
    ढेरों फोटो लिए जाएंगे
    अखबारों मे छपेगें किस्से
    वृक्षारोपण के .......
    उसके बाद कोई ना झाँकेगा
    कि इन लगाए गए वृक्षों का
    क्या भविष्य हुआ ....।

    सत्य को उजागर करता लाज़बाब सृजन सखी,पेड़ कागजो और फोटो पर नहीं धरती पर उगने होंगे।

    पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनायें,

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।

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  3. सत्य को प्रदर्शित करती बहुत ही सुंदर रचना, शुभा दी।

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    1. धन्यवाद ज्योति ।

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  4. सुंदर रचना

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    1. धन्यवाद ओंकार जी ।

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  5. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. धन्यवाद ओंकार जी ।

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  6. आज की यथार्थपूर्ण सच्चाई को आवाज देती सुंदर, सार्थक रचना ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद जिज्ञासा

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  7. पर्यावरण दिवस पर मुखर, प्रभावित रचना ...
    सच में इंसान अगर नहीं जागा तो कहीं का नहीं रहेगा, स्वयं ही खत्म हो जाएगा ...

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  8. लगाना आसान है लेकिन देखभाल के लिए समय निकालना पड़ता है वो बड़ा मुस्किल है. लोग अपना मतलब निकालते है. स्टिक रचना.
    पर्यावरण से, पेड़ पौधों से जुड़े विषय पर नया ब्लॉग बना है. आप एक बार जरुर पधारें
    मैंने ऐसे विषय पर; जो आज की जरूरत है एक नया ब्लॉग बनाया है. कृपया आप एक बार जरुर आयें. ब्लॉग का लिंक यहाँ साँझा कर रहा हूँ- नया ब्लॉग नई रचना

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  9. वृक्ष के उद्गारों द्वारा आपने सत्य को अनावृत किया है शुभा जी। आज दिखावे की नहीं, खोखली बातों की नहीं, ठोस और असली काम की ज़रूरत है।

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  10. वृक्षों की व्यथा को हृदयस्पर्शी शब्दों में व्यक्त सुन्दर सृजन ।

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  11. लगाएंगे कुछ वृक्ष
    ढेरों फोटो लिए जाएंगे
    अखबारों मे छपेगें किस्से
    वृक्षारोपण के .......
    उसके बाद कोई ना झाँकेगा
    कि इन लगाए गए वृक्षों का
    क्या भविष्य हुआ ....
    बहुत सटीक... वृक्षारोपण पर वृक्ष लगाते हुए तस्वीरे खिचवाने का चलन सा हो रखा है..और उसके बाद इन वृक्षों की देखभाल करेगा कौन...।सिर्फ वृक्षारोपण से पर्यावरण सुरक्षा कैसे...
    बहुत सारगर्भित सार्थक सृजन।

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  12. बरगद को केंद्र बनाकर अद्भुत ताना बना रचा है आपने। पर्यावरण से सरोकार रखती इस सुंदर रचना के लिए बधाई और आभार, शुभा जी।

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