Thursday, 8 July 2021

माटी

बरसात ..आहा.....
नन्ही -नन्ही फुहारों का 
  वो स्पर्श ...कितना अद्भुत !!
  मन आनंद मगन 
    माटी की खुशबू ..
     अपनी ही खुशबू 
       तू भी माटी ,
      मैं भी माटी ,
      मिल जाना है 
      तुझमें ही 
       फिर काहे इतना झमेला 
       तेरा -मेरा ,इसका -उसका 
       सब माया का खेला ।

शुभा मेहता 
9th July ,2021
      
  


30 comments:

  1. अरे वाह दी कम शब्दों में कितना सारगर्भित संदेश.
    तू भी माटी मैं भी माटी बहुत गूढ़ पंक्तियाँ।

    प्रणाम दी
    सादर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद श्वेता ।

      Delete
  2. माया.. महाठगिनी, फिर भी..............!

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद गगन जी ।

      Delete
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०९-०७-२०२१) को
    'माटी'(चर्चा अंक-४१२१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद प्रिय अनीता ।

      Delete
  4. बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद आलोक जी ।

      Delete
  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,शुभा दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद ज्योति ।

      Delete
  6. तू भी माटी ,
    मैं भी माटी ,
    मिल जाना है

    जीवन का यही आखिरी सत्य,बहुत ही सुंदर आध्यत्म भाव से भरपूर सृजन शुभा जी ,सादर नमन

    ReplyDelete
  7. मैं भी माटी ,
    मिल जाना है
    तुझमें ही
    फिर काहे इतना झमेला
    तेरा -मेरा ,इसका -उसका
    सब माया का खेला ।---गहन लेखन...शुभा जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद संदीप जी ।

      Delete
  8. जीवन की नश्वरता बताती अप्रतिम रचना । बहुत सुन्दर सृजन शुभा जी !

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद सखी मीना जी ।

      Delete
  9. वाह, बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,दिल को छू गई, शुभकामनाएं शुभा जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी ।

      Delete
  10. Replies
    1. धन्यवाद शिवम् जी ।

      Delete
  11. तू भी माटी ,
    मैं भी माटी ,
    मिल जाना है
    तुझमें ही

    बहुत बढिया शुभा जी | अपने ही जैसी सरल , सुबोध और सार्थक रचना लिख डाली आपने | हार्दिक शुभकामनाएं|

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद प्रिय सखी रेणु ।

      Delete
  12. सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  13. धन्यवाद ओंकार जी ।

    ReplyDelete
  14. बस आपकी रचना के लिए मुनव्वर राणा एक शेर कि
    "तमाम उम्र हम इक दूसरे से लड़ते रहे
    मगर मरे तो बराबर में जा के लेट गए"

    जीते जी के झमेले हैं सब मिट्टी के पुतले में प्राण क्या फुके गये.
    सुंदर रचना.

    नई पोस्ट पौधे लगायें धरा बचाएं

    ReplyDelete
  15. बहुत खूब ..
    माया का खेल ... प्राकृति तो ऐसी है ... सबको मोहित कर देती है ...
    बूंदों का असर, सर्द मौसम का खेल ... हर मौसम असर डालता है ...

    ReplyDelete