Sunday 30 January 2022

"हार"

न डर हार से 
सीख सबक 
दिखा दे अपनी ताकत 
बेहतर से बेहतरीन बनकर 
यूँ ही नहीं मिलती मंजिलें 
जगा दिल में एक जुनून 
यहाँ लडना भी खुद है
संभलना भी खु्द है
गिर कर उठना भी खुद है 
और हार कर जीतना भी ।



शुभा मेहता 
29th January ,2022

16 comments:

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आलोक जी ।

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (31-01-2022 ) को 'लूट रहे भोली जनता को, बनकर जन-गण के रखवाले' (चर्चा अंक 4327) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अनुज रविंद्र जी ।

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  3. वाक़ई, मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

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    1. धन्यवाद अनीता जी ।

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  4. वाह!वाह!प्रिय शुभा दी जी बेहतरीन 👌
    सादर

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    1. धन्यवाद प्रिय अनीता ।

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  5. बहुत सुंदर शुभा जी सचमुच डरने वाले ही हारते हैं निड़र तो फिर उठकर चल पड़ते हैं।
    सुंदर भाव सृजन।

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    1. धन्यवाद कुसुम जी ।

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  6. बहुत ही प्रेरणादायक रचना

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    1. धन्यवाद मनीषा जी ।

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  7. बहुत उम्दा एवं प्रेरणादायक अभिव्यक्ति आदरणीय मेम ।

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  8. यहाँ लडना भी खुद है
    संभलना भी खु्द है
    गिर कर उठना भी खुद है
    और हार कर जीतना भी ।
    बहुत सुंदर सराहनीय अभिव्यक्ति ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।

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