किस्मत की औकात कहाँ
बंद कर ....
किस्मत का रोना ,रोना ...
जमकर मेहनत कर
कर वक्त का पूरा इस्तेमाल
देख ,जाए न एक क्षण भी बेकार
दम हो ग़र इरादों में
तो झुक जाती हैं मंजिलें भी
कर भरोसा अपने आप पर
इधर-उधर सहारा मत ढूँढ
भटक जाएगा ....
"कल" तो गया
"कल"अभी आया नहीं
"आज"मौजूद है
चल कर नई शुरुआत ।
शुभा मेहता
1stFeb ,2022
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 2 फरवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
बहुत-बहुत धन्यवाद सखी पम्मी जी ।
ReplyDelete"कल" तो गया
ReplyDelete"कल"अभी आया नहीं
"आज"मौजूद है
चल कर नई शुरुआत
–वाह
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
बहुत-बहुत धन्यवाद विभा जी ।
Deleteबहुत बहुत बहुत ही प्रेरणादायक रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आलोक जी ।
Deleteप्रेरक रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी ।
Deleteदम हो ग़र इरादों में
ReplyDeleteतो झुक जाती हैं मंजिलें भी
कर भरोसा अपने आप पर
वाह!!!
बहुत ही प्रेरक एवं लाजवाब सृजन।
बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी ।
Deleteचल नई शुरुआत कर ...
ReplyDeleteसच कहा अहि ... किस्मत के भरोसे क्यों बैठना ... रोज़ आज ही है ...
बहुत-बहुत धन्यवाद दिगंबर जी ।
Deleteकल" तो गया
ReplyDelete"कल"अभी आया नहीं...
वर्तमान में रहना ही तो नहीं सीख पाते हम ! ये कल-कल हावी होती रहती है मन पर।
बहुत-बहुत धन्यवाद मीना जी।
Deleteसुंदर भाव आदरनीय ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबहुत अच्छी कविता हार्दिक शुभकामनाएं।सादर अभिवादन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteवाह! प्रेरक रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Delete"कल" तो गया
ReplyDelete"कल"अभी आया नहीं
"आज"मौजूद है
चल कर नई शुरुआत
–वाह: उत्तम सोच
°°
–सार्थक सृजन