Sunday, 20 March 2022

वृक्ष

जब मैं रोपा गया जमीन में,
कितना खुश था .......
इच्छा बस इतनी सी थी 
कुछ कर जाऊं मानव के लिए 
 लालसा थी बस देने की ....
  छाँव ,फल ,फूल यहाँ तक की टहनियाँ भी ।
   फैलाता रहा शाखाएं ,छाँव देने को 
   पक्षियों को घर देने को 
   लगती थी भली उनकी चहचहाहट 
   फल दिए मीठे-मीठे 
    हुआ बहुत चोटिल भी 
    पत्थरों की मार से
   जो फेंके जाते फलों को तोडने के लिए 
   फिर भी आनंद था ,कुछ देने का 
    आँधी -तूफान में भी खडा रहा अडिग 
    पर आज ,दुखी हूँ बहुत 
    जिस मानव को दिया इतना कुछ 
     वो ही कुल्हाडी लेकर काट रहा शाखाएं मेरी 
     सुना मैंने ................
     कह रहा था जंगल होगा साफ 
      घर जो बनाने है उसे .....
       मूर्ख है ....जानता नहीं क्या होगा 
        इसका अंतिम परिणाम ..।

19 comments:

  1. शुभा दी,जिस दिन इंसान पेड़ो का महत्व समझ जाएगा वह दिन सचमुच इंसान केलिए वरदान साबित होगा।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति ।

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  2. Wah. Bohot accha likha hai ������

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  3. सार्थक प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद ओंकार जी ।

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  4. वृक्षों के महत्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करती भावपूर्ण अभिव्यक्ति । बहुत सुन्दर सृजन शुभा जी ।

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    1. धन्यवाद सखी मीना जी ।

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    1. धन्यवाद संगीता जी ।

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    1. धन्यवाद आलोक जी ।

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  7. पर्यावरण के प्रति चिंतनपूर्ण रचना । बहुत बधाई शुभा जी ।

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    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी ।

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  8. पर्यावरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करती प्रस्तुति
    परिवारिक व्यस्ताओं के कारण बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आना हुआ पढ़कर अच्छा लगा!

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    1. धन्यवाद संजय जी ।

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  9. बहुत सुन्दर रचना

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  10. धन्यवाद मनोज जी ।

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  11. वृक्ष की व्यथा को बयान करती भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय शुभा जी।वृक्ष अपने लिये नहीं जीता।औरों को खुशी देकर अन्त में उसे विश्वासघात ही मिलता है।

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