कितना खुश था .......
इच्छा बस इतनी सी थी
कुछ कर जाऊं मानव के लिए
लालसा थी बस देने की ....
छाँव ,फल ,फूल यहाँ तक की टहनियाँ भी ।
फैलाता रहा शाखाएं ,छाँव देने को
पक्षियों को घर देने को
लगती थी भली उनकी चहचहाहट
फल दिए मीठे-मीठे
हुआ बहुत चोटिल भी
पत्थरों की मार से
जो फेंके जाते फलों को तोडने के लिए
फिर भी आनंद था ,कुछ देने का
आँधी -तूफान में भी खडा रहा अडिग
पर आज ,दुखी हूँ बहुत
जिस मानव को दिया इतना कुछ
वो ही कुल्हाडी लेकर काट रहा शाखाएं मेरी
सुना मैंने ................
कह रहा था जंगल होगा साफ
घर जो बनाने है उसे .....
मूर्ख है ....जानता नहीं क्या होगा
इसका अंतिम परिणाम ..।
शुभा दी,जिस दिन इंसान पेड़ो का महत्व समझ जाएगा वह दिन सचमुच इंसान केलिए वरदान साबित होगा।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति ।
DeleteWah. Bohot accha likha hai ������
ReplyDeleteBahut-bahut dhanyvad
Deleteसार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteवृक्षों के महत्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करती भावपूर्ण अभिव्यक्ति । बहुत सुन्दर सृजन शुभा जी ।
ReplyDeleteधन्यवाद सखी मीना जी ।
Deleteविचारणीय रचना .....
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी ।
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteधन्यवाद आलोक जी ।
Deleteपर्यावरण के प्रति चिंतनपूर्ण रचना । बहुत बधाई शुभा जी ।
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी ।
Deleteपर्यावरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करती प्रस्तुति
ReplyDeleteपरिवारिक व्यस्ताओं के कारण बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आना हुआ पढ़कर अच्छा लगा!
धन्यवाद संजय जी ।
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद मनोज जी ।
ReplyDeleteवृक्ष की व्यथा को बयान करती भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय शुभा जी।वृक्ष अपने लिये नहीं जीता।औरों को खुशी देकर अन्त में उसे विश्वासघात ही मिलता है।
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