मैं ..हिन्दी ...
कौन?????
इतना पूछकर
कुछ किशोरों का दल
पुनः व्यस्त हुआ बातों में
और मैं ..चुपचाप खडी
डूब गई उनकी बातों में ।
अपने ही देश में
हाल देख अपना
रोना -सा आ गया
कुछ शब्द मेरे थे
कुछ अजनबी से थे
लगा जैसे शब्दों कई खिचड़ी -सी
पक रही हो ..।
अरे ,मेरा तो सौंदर्य ही खत्म हो गया
कितनी सभ्य, अलंकारों से सजी थी
क्या हाल बना दिया ।
मेरी यही कामना है ..
प्रार्थना है ....
निज देश में मान दो ,
सम्मान दो ...
बनाओ मुझे ताकत अपनी
मैं तो आपके मन की भाषा हूँ
प्रेम की भाषा हूँ
क्या दोगे अपना प्रेम ?
शुभा मेहता
15th September ,2022
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१९-०९ -२०२२ ) को 'क़लमकारों! यूँ बुरा न मानें आप तो बस बहाना हैं'(चर्चा अंक -४५५६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बस दुःख होता है ऐसी दशा पर। अधिक प्रेम करने की अब आवश्यकता आ पड़ी है। सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteहिंदी की व्यथा को बखुबी व्यक्त किया है आपने शुभा दी।
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