Friday 16 September 2022

मैं ...हिंदी .




मैं ..हिन्दी ...

कौन?????
इतना पूछकर  
कुछ किशोरों का दल 
पुनः व्यस्त हुआ  बातों में 
और मैं ..चुपचाप  खडी 
डूब गई  उनकी बातों में ।
अपने ही देश में 
 हाल देख अपना 
   रोना -सा आ गया 
   कुछ शब्द  मेरे थे 
    कुछ अजनबी से थे 
     लगा जैसे शब्दों कई खिचड़ी -सी 
      पक रही हो ..।
      अरे ,मेरा तो सौंदर्य  ही खत्म  हो गया 
       कितनी सभ्य, अलंकारों से सजी थी 
       क्या हाल बना दिया ।
       मेरी यही कामना है ..
       प्रार्थना है ....
        निज देश में मान दो ,
        सम्मान  दो ...
         बनाओ मुझे ताकत  अपनी 
          मैं तो आपके मन की भाषा हूँ  
            प्रेम  की भाषा हूँ  
              क्या दोगे अपना प्रेम  ?

शुभा मेहता 

15th September  ,2022

 

4 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१९-०९ -२०२२ ) को 'क़लमकारों! यूँ बुरा न मानें आप तो बस बहाना हैं'(चर्चा अंक -४५५६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बस दुःख होता है ऐसी दशा पर। अधिक प्रेम करने की अब आवश्यकता आ पड़ी है। सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  3. सुन्दर सृजन

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  4. हिंदी की व्यथा को बखुबी व्यक्त किया है आपने शुभा दी।

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