Tuesday, 15 November 2022

किताब

किताबें ,सबसे अच्छी दोस्त  हमारी ...  
 मैंने जैसे ही इक सुन्दर से कवरवाली  किताब खोली 
  तो ..जैसे मैं तो उसमें खो ही गई  
    शायद ही कोई  ढूँढ  पाएगा मुझे 
      मेरी कुर्सी ,मेरा घर, 
       मेरा गद्दा ,मेरी चादर, 
मेरा गाँव.....सब पीछे छूट गया 
  रानी के साथ  घूमी ,
    राजकुमारी के साथ खेली 
      मछलियों के साथ  समुद्र की यात्रा की 
       कुछ दोस्त  भी बने 
         जिनका दुख -सुख मैंने बांटा 
          जैसे ही किताब  खत्म करके बाहर  आई 
            वो ही कुर्सी ,वो ही घर ...
             पर मन के अंदर रह गई  
            सुनहरी यादें......

शुभा मेहता 
  15th November  ,2022

9 comments:

  1. वाह! एक अच्छी किताब घर बैठे दुनिया की सैर करा देती है

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी ।

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  2. पुस्तकें सदा से ही अच्छी दोस्त, मार्गदर्शक तथा चरित्र निर्मात्री रही हैं

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद गगन शर्मा जी ।

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 17 नवंबर 2022 को 'वो ही कुर्सी,वो ही घर...' (चर्चा अंक 4614) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अनुज रविन्द्र जी ।

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना सखी

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  5. वाह!!!
    बहुत सटीक ....सच मे किताबों से अच्छा दोस्त कोई नहीं।

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