Monday, 10 February 2025

बूढ़ा बचपन

झुकी कमर ,कांपते हाथ 
धुंधली आँखों के सौ सवाल 
 खिलौनों की जगह छडी पकडता 
  बूढ़ा बचपन मुस्कुराता हर हाल ।
  कभी धूप में नंगे पाँव दौड़ा 
   आज छांव में ठहर गया 
    जो कल था उछलता  पानी -सा 
    अब चुपचाप  ठहर गया है 
      खेलता दोस्तों संग कभी 
       अब यादों संग खेलता है 


   शुभा मेहता 
   10th February, 2025

  
         

6 comments:

  1. भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    जीवन के महत्त्वपूर्ण पड़ाव की पीड़ा शब्दों में व्यक्त किया है आपने दी।
    सादर।
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ११ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय श्वेता

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  2. बूढ़ा बचपन मुस्कुराता हर हाल
    जो होना है उससे डरना क्यूं
    कौन रोक पाया है
    शानदार हकीकत
    वंदन

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद

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  3. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद

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