धुंधली आँखों के सौ सवाल
खिलौनों की जगह छडी पकडता
बूढ़ा बचपन मुस्कुराता हर हाल ।
कभी धूप में नंगे पाँव दौड़ा
आज छांव में ठहर गया
जो कल था उछलता पानी -सा
अब चुपचाप ठहर गया है
खेलता दोस्तों संग कभी
अब यादों संग खेलता है
शुभा मेहता
10th February, 2025
बूढ़ा बचपन मुस्कुराता हर हाल
ReplyDeleteजो होना है उससे डरना क्यूं
कौन रोक पाया है
शानदार हकीकत
वंदन
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय श्वेता
ReplyDeleteजो कल था उछलता पानी -सा
ReplyDeleteअब चुपचाप ठहर गया है
खेलता दोस्तों संग कभी
अब यादों संग खेलता है
बेहतरीन
बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteखूबसूरत रचना
ReplyDeleteज़िन्दगी का सार यही है ...
ReplyDeleteसुंदर काव्य सृजन
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति शुभा जी ! जीवन के सार का यथार्थ यही है ।
ReplyDeleteइस कविता में जीवन के सफर और उम्र के साथ बदलाव को बहुत ही सुंदर तरीके से पेश किया गया है। “झुकी कमर, कांपते हाथ” जैसे शब्द उस अवस्था की सहज तस्वीर बनाते हैं, जो हर किसी के जीवन में आती है। साथ ही, बचपन के खिलौनों की जगह छड़ी पकड़ना और यादों संग खेलना, समय की मार को बयां करता है।
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