Monday, 10 February 2025

बूढ़ा बचपन

झुकी कमर ,कांपते हाथ 
धुंधली आँखों के सौ सवाल 
 खिलौनों की जगह छडी पकडता 
  बूढ़ा बचपन मुस्कुराता हर हाल ।
  कभी धूप में नंगे पाँव दौड़ा 
   आज छांव में ठहर गया 
    जो कल था उछलता  पानी -सा 
    अब चुपचाप  ठहर गया है 
      खेलता दोस्तों संग कभी 
       अब यादों संग खेलता है 


   शुभा मेहता 
   10th February, 2025

  
         

12 comments:

  1. बूढ़ा बचपन मुस्कुराता हर हाल
    जो होना है उससे डरना क्यूं
    कौन रोक पाया है
    शानदार हकीकत
    वंदन

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद

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  2. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद

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  3. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय श्वेता

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  4. जो कल था उछलता पानी -सा
    अब चुपचाप ठहर गया है
    खेलता दोस्तों संग कभी
    अब यादों संग खेलता है

    बेहतरीन

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद

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  5. खूबसूरत रचना

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  6. ज़िन्दगी का सार यही है ...

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  7. सुंदर काव्य सृजन

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  8. बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति शुभा जी ! जीवन के सार का यथार्थ यही है ।

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  9. इस कविता में जीवन के सफर और उम्र के साथ बदलाव को बहुत ही सुंदर तरीके से पेश किया गया है। “झुकी कमर, कांपते हाथ” जैसे शब्द उस अवस्था की सहज तस्वीर बनाते हैं, जो हर किसी के जीवन में आती है। साथ ही, बचपन के खिलौनों की जगह छड़ी पकड़ना और यादों संग खेलना, समय की मार को बयां करता है।

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