Saturday, 6 December 2025

ख्वाहिशें....

ये मन भी बड़ा अजीब  है 
कितनी ख्वाहिशें पाल लेता है 
   बस उन्मुक्त गगन में 
    अविरत ,विचरण करता रहता है 
   सोच को लगाम लगती ही नहीं 
     ऐसा होता ,वैसा होता 
       क्षण भर में तो कहाँ से कहाँ 
         पहुँच  जाता है ...
         काश ऐसा होता ,काश वैसा होता
          फिर उन ख्वाहिशों को पूरा करनें में
            घिसता रहता है ......
               पता ही नहीं चलता 
                इस आपाधापी में 
                 कब उम्र गुजर जाती है 
                 पा भी लेता है 
                  भौतिक सुविधाएँ...
                  लेकिन कहीं खो जाती है 
                   वो प्यार भरी बातें 
                   वो सुकून ....।


शुभा मेहता 
6th nov ,2025
                 

          

6 comments:

  1. सही कहा है अपने ... वक़्त के साथ सभी कुछ होना ही जीवन है ...

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द सोमवार 08 दिसंबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  3. वो सुकून ..
    उसी सुकून की तलाश हर किसी को है
    अच्छी रचना

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  4. बहुत सुंदर रचना

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  5. बहुत सुंदर

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