पापा मेरे कितने अच्छे
कितने प्यारे प्यारे थे
थे बड़े मितभाषी वो
आँखों से स्नेह जताते थे
हौले से मुस्काते थे
पापा मेरे.. .....
बैठाते स्कूटर पर
चीजें दिलवाने ले जाते थे
कपडे ,जूते ,पेन -पेंसिल और किताबें लाते थे
और यदि होती कोई गलती
जोर से डांट लगाते थे
पापा मेरे...
पढ़ा लिखा लायक बनाया
अच्छी सीख सिखाते थे
फिर एक दिन ,
बैठाया जब डोली में
आंसू सबसे छुपाते थे
पापा मेरे.....
जब जाती ससुराल से में तो
मूली ,करेला कभी न लाते थे
कहाँ चले गए छोड़ मुझे अब
याद बहुत ही आते हैं
पापा मेरे..
शुभा मेहता
बहुत प्यारी रचना है, दिल को छू गयी.
ReplyDeleteधन्यवाद भाईसाहब।
ReplyDeleteRula hi diya.....
ReplyDeleteRula hi diya.....
ReplyDeleteरुला दिया शुभा जी । मेरे पापा याद आ गए । वो भी ऐसे ही थे । वास्तव में सब पापा ऐसे ही होते हैं । सदा सौभाग्यवती रहो । तुम्हारा भाई ...राजेश । बुरा मत मानना लाड में अपनी बहन को तुम कह गया ।
ReplyDeleteधन्यवाद राजेश भाई ।
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