Tuesday, 22 May 2018

तपती दुपहरी..

जेठ की इस
  तपती दुपहरी में
हाल -बेहाल
  पसीने से लथपथ
   जब काम खत्म कर
   वो निकली बाहर
   घर जाने को
   बडी़ गरमी थी
   प्यास से गला
   सूखा.......
   घर पहुँचने की जल्दी थी
   वहाँ बच्चे कर रहे थे
    इंतजार उसका
    सोचा ,चलो रिक्षा कर लूँ
     फिर अचानक बच्चों की
     आवाज कान में गूँजी..
   "माँ ,आज लौटते में
    तरबूज ले आना
    गरमी बहुत है
    मजे से खाएंगे"
    और उसके कदम
    बढ़ उठे उधर
    जहाँ बैठे थे
    तरबूज वाले
    सोचा ,बच्चे कितने खुश होगें
    मैं तो पैदल ही
     पहुंच जाऊँगी ...
     पसीना पोंछ
     मुस्कुराई ...
     तरबूज ले
    चल दी घर की ओर ....माँँ जो थी ..।

.   शुभा मेहता 

  23May ,2018




     

21 comments:

  1. Wonderful ma ka hriday apne baccho ke liye hi dhadakta hai aur phir agar vo insaan ho toh apne sapnay bhi vo peeche chhod deti hai baccho ke sapno ko pura krne ke liye aur ye baat tujhse behtar aur kaun samajh skta hai jisne apne jiwan je na jaane kitne vasant baccho ko sahi shiksha aur unke har sukh ka khyal rakhne me vyateet kiye hon bahut bahut jiye deerghayu ho dheron pyaar snehashish shubhashish 😘😘😘😘😘😘.
    💐💐💐💐💐💐💐

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन
    इस विषय पर पहली रचना दिखी
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी ।

      Delete
  3. बहुत बढ़िया रचना, शुभा जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति ।

      Delete
  4. मास की भावनाएँ और गरमी का असर ... दोनों ही ज़रूरी हैं ... बहुत ख़ूब ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद दिगंबर जी ।

      Delete
  5. गरमी में तरबूज खाकर तरावट आ जाती है शरीर में
    बहुत सुन्दर सामयिक रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद ।

      Delete
  6. वाह ! बहुत सुंदर आदरणीया ! बहुत खूब ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद ।

      Delete
  7. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    सोमवार 28 मई 2018 को प्रकाशनार्थ साप्ताहिक आयोजन हम-क़दम के शीर्षक "ज्येष्ठ मास की तपिश" हम-क़दम का बीसवां अंक (1046 वें अंक) में सम्मिलित की गयी है।
    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद रविन्द्र जी।

      Delete
  8. गरीब मजबूर माँ स्वयं कष्ट झेलती पर बच्चों की जरुरतें पूरा करती...माँ ज़ो है...
    बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद ,सुधा जी ।

      Delete
  9. वाह्ह..दी सुंदर भाव उकेरती एक प्यारी सी रचना..👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद ,श्वेता ।

      Delete
  10. वाह शानदार थोडे से मे अनकहे कितने भाव कह दिये।
    अतिउत्तम रचना।
    वो तरबूज खाने की खुशी बच्चों के मुख पर देख कर मां का गर्मी से बेहाल तन मन सब तृप्त ।
    सुंदर आंतरिक भाव।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कुसुम जी ।

      Delete
  11. ना जाने कितने ही माता पिता ऐसे हैं जो अपने बच्चों के चेहरे पर खुशी देखने, उनके सपने पूरे करने इस मई महीने की भरी गर्मी में काम करने बाहर निकलते हैं....सब्जीवाले, रिक्षावाले, कुली, हाथगाड़ी खींचनेवाले, दिहाड़ी मजदूर - मजदूरनियाँ.....कितने गिनाएँ?
    हृदय छू गई आपकी रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत धन्यवाद मीना जी ।

      Delete