Sunday, 6 May 2018

हद ...


कितना सरल होता है  
  दूसरों के लिए अच्छा
   बन जाना....
    बस सबका कहा करते चलो
    अपनी बात पर अड़ो नही
     गलत हो तो भी सह जाओ
     हाँ इंसा हो ,क्रोध भी आएगा
     पर जरा गरम होकर
    ठंडा हो जाना
    जरूरी नहीं कि
   सच्ची हो सभी बातें
    पर बोलने का यहाँ
   है मोल ही क्या
   तो बस ,बिना बोले
   ज़रा सा मुस्कुरा देना
    अगर हो बात कोई
    नापसंद हमें
   चुपचाप वहाँ से खिसक जाना
  कितना सरल होता है
   दूसरों के लिए अच्छा बन जाना ...
   अपनी अच्छाई की तारीफें पा लेना
   पर अब समझ आने लगा है सब
   ख्वामख्वाह अच्छा बनने के चक्कर में
   अपना जीवन यूँ ही गँवा रहे हैं हम
   शायद ,अब बुरे लगने लगे हैं
  क्योंकि अब नही रहते हाजिर
   पहले सभी काम कर दिया करते थे
   हँसते हँसते ...
    पर धीरे धीरे
    फायदा उठाने लगे लोग
    लादने लगे काम का बोझ
     और हम धीरे धीरे
    होने लगे दिल और दिमाग से बोझिल
     पीठ पीछे वो ही लोग
     हमें बेवकूफ समझते
      मजाक भी उडाते
      बस अब तो हद हो गई ........
     इन सभी के बीच
    कहाँ खो गया
      हमारा अस्तित्व...?
     बस अब मन में ठान लिया
     अब और नही.....
     जीना है अब हमें
     कुछ अपने लिए भी
    शायद इसलिए
     बुरे लगने लगे है
     पर खुश है हम ...
    अन्तकरण से ..।
       
शुभा मेहता ..
  6th May 2018
 

15 comments:

  1. Sundar rachna yatharth ja chitran hai jo dabata hai use aur dabaya jaata gai jai vaar toh abhivyakti Ki azadi tak cheen li jaati hai bahut accha likh rahi hai aajkal meri hardik bdhai hai tujhe aur khoob likh bahut bahut pyaar aur ashirwad 😘😘😘😘😘👏👏👏👏👏💐💐💐💐💐😊😊😊😊😊😊

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  2. बहुत सही लिखा है आपने शुभा दी..अच्छे लोगों की अच्छाई का लोग फायदा उठते है और खुश होते है सोचकर कि वो कितने बुद्धिमान है।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी👌

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता ....

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  3. बहुत सुन्दर रचना।.........
    मेरे ब्लाॅग पर आपका स्वागत है ।

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    1. धन्यवाद संजू जी । जी, जरूर ..।

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति शुभा जी ।

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    1. धन्यवाद मीना जी ।

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  5. शुभा, जिंदगी खुशी खुशी जीने के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम दूसरों को हमारा अनुचित फायदा न उठाने दे। इस बात को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है आपने।

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    1. धन्यवाद ज्योति ..।

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  6. निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



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  7. सही कहा है .. अपना अस्तित्व खोना पड़ता है इसकिये अपने आपको खुद के अनुसार ही जीवा उचित है ...

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  8. दूसरों के लिए अच्छा होना बहुत कुछ सहने के बराबर है।
    और सहते सहते हम तो खो ही जाते हैं।
    ये तो नादानी है।

    अच्छी रचना

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद ।

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