आज जब शाम को वॉक के लिए गई तो देखा मंजू कुछ उदास सी दिखाई दी , मैं और मंजू रोज साथ ही वॉक पर जाते हैं ,अब दोस्ती इतनी गहरी हो गई है कि बस चेहरा देख कर ही एक -दूसरे के मनोभाव पढ़ लेते हैं । मैंने पूछा.. क्या बात है आज तुम्हारा मूड कुछ उखड़ा सा लग रहा है ,कल तो बड़ी खुश थी ,बेटे ने नई गाड़ी जो ली है ..।बस मेरा इतना कहना था कि उसकी आँखों में आँसू छलछला उठे ...।
बोली ..हाँ ...मैं तो बहुत खुश थी ..आज सुबह बेटे नें
कहा माँ चलो मंदिर जाना है नई कार की पूजा करनें । मैंने खुशी खुशी पूजा की थाली तैयार की ,तभी बेटा बोला माँ जल्दी करो हमें आफिस के लिए देर हो रही है ,मैं बोली बेटा तैयार तो हो जाऊँ ,तो बेटा बोला अरे माँ ऐसे ही बैठ जाओ ,कार में ही तो जाना है ..और मैं भी खुशी के मारे बस ऐसे ही चल दी न तैयार हुई ,न पर्स लिया । मंदिर पहुँच कर पूजा की ..भगवान की भी और कार की भी ,मन ही मन बहुत प्रसन्न थी ..बेटा ;बहू कितना ध्यान रखते है ,अपनी किस्मत पर आह्लादित हो रही थी ।
तभी बहू के आफिस से किसी का फोन आया ,और लगभग आधे घंटे वार्तालाप चला ,और मैं स्लीपर पहने ,हाथ में थाली लिए खडी रही ,फिर अचानक बेटे नें कहा माँ हमें जल्दी आफिस पहुँचना है ,आप घर चले जाओ , और वो दोनो गाडी स्टार्ट करके चले गए ..मैं आवाक् सी खडी देखती रह गई ..हाथ पैर जैसे सुन्न हो गए । पास में पैसे भी नहीं लिए थे ,हाथ में थाली पकडे धीरे धीरे घर की ओर कदम बढाने लगी .....।
सोच रही थी क्या मेरे बेटे के पास पाँच मिनिट भी नहीं थे मेरे लिए ,घर तो छोड़ ही सकता था ..और आँसू ढुलक पडे उसके गालों पर ...
अब सवाल ये उठता है कि क्या मंजू के बेटे ने जो किया वो सही था ...नहीं न..। पर मैं जहाँ तक जानती हूँ मंजू के बेटा बहू बहुत ही सुशील और सयाने हैं ,उनका इरादा अपनी माँ को दुखी करने का कभी हो ही नहीं सकता , असल बात तो ये है कि मंजू ने अपने बेटे को कभी कोई जिम्मेदारी सौंपी ही नही , वो सभी काम स्वयं ही कर लेना चाहती है ,और उसका बेटा अपनी माँ को सुपर वुमन समझता है ,और शायद यही वजह थी ,कि वो समझ ही नहीं पाया कि उसकी माँ घर कैसे पहुँचेगी ..क्यों दोस्तों आप क्या कहते है?
शुभा मेहता
Sach mein accha hai ma baap ko chahiye baccho ko thodi jimmedari dein jis se ki unhe doosron ki takleefon ka ehsas ho teri behtareen soch ka hi kayal hoon bahut khoob bahen 😘😘😘😘😘👏👏👏👏💐💐💐💐💐😊😊😊😊😊
ReplyDeleteबातों की गहराई में जांए तो बच्चों को जिम्मेदार बना माता पिता का काम है आपकी बातों से सहमत हूँ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद नितिन भाई ।
Deleteनिमंत्रण विशेष :
ReplyDeleteहमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।
यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !
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