गरज आए बदरा कारे
चहुँ ओर पावस भर लाए
मोर -पपीहा झूमे -नाचे
कोयल छेड़े राग मल्हार
धरती भी तो झूम रही है
पहन चुनरिया धानी
पत्ती -पत्ती सजी हुई है
बूँद मोतियों से जैसे
बच्चे उछल -उछल कर
करते छप्पक-छैया
कोई नाव बना तैराता
कोई खुद से फिसल गिर जाता
कहीं पकौड़ो की खुशबू .....
वाह.......!!
वर्षा के आगमन से
त्यौहार समाँ हो जाता ।
शुभा मेहता
7thJuly ,2018
Megh malhar ek tyohar samaan jahan kagaz ki kashti tairti bacchon ki man marzi se baar baar hilloron se uthti girti doobti phir nyi aa jaati tairne aur sach mein pakodon ka bhi mahatva bahut garima poorn hota is meh je umadte mausam mein wah bahen adbhut abhivyakti sundar saral komal vichar aur bhasha ke madhyam se jiyo raja khoob jiyo aur khoob likho dheron dher pyaar jhappiyan aur snehashish 😘😘😘😘💐💐💐💐💐😊😊😊😊😊
ReplyDelete😊😊
Deleteसुन्दर चित्र खींचा है आपने
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी ।
DeleteSunder chitran kiya hai aapne apni kavita ke madhyam se varsha ritu ka Aagaman sukhdai, Mangaldayi hota hai.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद नितिन भाई ।
Deleteधरती का श्रृंगार लौट आता है मेघ मल्हार में, वर्षा बहार में
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
बहुत बहुत धन्यवाद कविता जी ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ९ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता ।
Deleteवाह शुभा जी कविता की सौंधी महक दिल लुभा गई ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद कुसुम जी ।
Deleteजी ,जरूर ।
ReplyDeleteसहज और सरस ! बधाई !
ReplyDeleteकहीं पकौड़ो की खुशबू....वाह.....!!
ReplyDeleteकमाल का लिखा है
वर्षा के आगमन का बहुत ही सुंदर वर्णन।
ReplyDeleteप्रिय शुभा बहन आज आपकी रचना पढ़ते हुए खिडकी के बाहर है -
ReplyDeleteगरज आए बदरा कारे
चहुँ ओर पावस भर लाए
मोर -पपीहा झूमे -नाचे
कोयल छेड़े राग मल्हार -
बस कोयल नहीं कूक रही पर मेघ मल्हार ज्यों का त्यों है | मनमोहक रचना के लिए हार्दिक बधाई |