बाल दिवस मन करता है
चलो आज मैं ,
फिर छोटा बच्चा बन जाऊँ
खेलूं कूदूं ,नाचूँ ,गाऊँ
उछल उछल इतराऊँ
मन करता है...
खूब हँसूं मैं
मुक्त स्वरों मेंं
धमाचौकड़ी मचाऊँ
फिर माँ दौड़ीदौडी़ आए
झूठ मूठ की डाँट लगाए
मैं पल्लू उसके छुप जाऊँ
मन करता है .....
उछल उछल कर चढूं पेड़ पर
तोड़ कच्ची इमली खाऊँ
झूलूं बरगद की शाखा पर
गिरूं अगर तो झट उठ जाऊँ
मन करता है.....
शुभा मेहता
15th Nov ,2017
शुभा दी, आपकी रचना पढ़ कर सच में फिर से बच्चा बनने की इच्छा हो रही हैं। कितन सुंदर होता हैं बचपन! बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ नवंबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
बढ़िया
ReplyDeleteइंसान फिर से बचा बन जाये तो बात ही क्या ...
ReplyDeleteपर फिर भी मन बच्चे सा भी अगर कर ले इंसान तो भी सफल है ...
अच्छी रचना ....
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत खूब...सुंदर रचना.
ReplyDeleteVery nice post...
ReplyDeleteWelcome to my blog for new post.