बैठ जाते अलाव जलाकर
जिनका न कोई ,ठौर -ठिकाना
ना बिस्तर ,ना कंबल
आग सेकते..
कुछ कुत्ते -बिल्ली भी साथ में
ठंडी हवाएं ,ठरता अलाव
उनींदी आँखेँ ..
आँखों म़े सपने
बस इतने
काश होता इक घर
चाहे छोटा सा ..
होता इक बिस्तर
बस इक कंबल .....
चैन से तो सोता ।
शुभा मेहता
12th Dec ,2019
Log apna jiwan kitni tarah ki kathinaiyon se kaat te hain thithurti raat sard hawa sar par chat nhi kuch kachre ko jamaa kr alaav bnana aur din ki thakan utarna bahut bhavuk krti kavita hai apne aas pass ghat rhi pidaon ka chitran 👏👏👏💐💐💐😊😊😊
ReplyDelete,😊😊😊😊😊
Deleteसड़क पे रहने वालों की प्रासादी को लिखा है ...
ReplyDeleteसच है की इस ठिठुरती रात में एक कम्बल ... इसके आगे कुछ नहीं ...
धन्यवाद दिगंबर जी ।
Deleteप्रशंसनीय
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय । स्वागत है आपका अभिव्यक्ति में 🙏
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-१२-२०१९ ) को " पूस की ठिठुरती रात "(चर्चा अंक-३५४९) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
धन्यवाद प्रिय सखी ।
Deleteदुखदायी !
ReplyDeleteधन्यवाद गगन शर्मा जी ।
Deleteमर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सखी ।
Deleteबेघरों की मार्मिक दशा ,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमन
ReplyDeleteधन्यवाद सखी ।
Deleteबेघर और अनाथ लोगों की व्यथा का मर्मस्पर्शी चित्रण ।
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी ।
Deleteहृदय स्पर्शी यथार्थ सृजन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर शुभा जी।
बहुत-बहुत धन्यवाद कुसुम जी ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१६ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
काश ऐसा हो जाये ,घर और बिस्तर मिल जाये
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
Deleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी ।
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