इस दिवाली .......
सारा घर साफ कर डाला ।
घर ? या वो यादें
वो सपने ..
वो नोटबुक की स्याही
वो आँगन का बडा पेड़
बैठ छाँव में जिसकी
गाते थे गीत
खेलते थे अंताक्षरी
वो भी कटवा दिया शायद ।
वो झूठमूठ के झगड़े
वो हमारी खिलखिलाकर
सभी साफ कर दी
साबुन से धोकर ।
सबब इसका न जान सकी अब तक
जान बसती थी एक -दूसरे में हमारी
कोई बात नहीं दोस्त ..
देखो नये सपने ..
भर लो नए रंग ......
मैं भी पा ही लूँगी कोई
दोस्त ............अच्छा सा ।
24th Nov ,2020
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सर ।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद शिवम् जी ।
ReplyDeleteबचपन की मित्रता को सजीव करती सुंदर अभिव्यक्ति ..।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।
Deleteआदरणीया शुभा जी, इस सटीक व्यंग्य ओ रचते हुए भावनाओं को खूब पिरोया है आपने । आपकी इस वैचारिक उत्कृष्ठता को नमन करते है साधुवाद। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ । शुभ प्रभात।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद पुरुषोत्तम जी ।
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद यशोदा जी ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद सखी ।
Deleteउम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद गगन जी ।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आलोक जी ।
Deleteकाट देने के बावजूद कई यादें, सपने, नहीं जाते ... पर हाँ नए को ज़रूर ढूँढना होता है ... सफाई जरूरी है दीपावली में ...
ReplyDelete