Tuesday, 24 November 2020

मेरे मन की बात ..

बात मेरे मन की है ,जरूरी नहीं आप भी सहमत हों इससे 🙏🏻

बात कुछ दिनों पहले की है....जब कोविड का डर नहीं था । मैं रोज बगीचे में घूमने जाया करती थी । वहाँ एक बेंच पर अक्सर एक लडकी को अकेले गुमसुम बैठा देखती । एक दिन जा पहुँची उसके पास और वहीं बैठ गई । मैंने उसकी ओर मुस्कुरा कर देखा बदले में उसनें भी एक फीकी -सी मुस्कान दी ।अब तो रोज में उसके पास जाकर बैठने लगी पर उसे कभी खुश नहीं देखा ।मैं बात करने की कोशिश भी करती तो वह बस हूँ ,हाँ में जवाब देती।
एक दिन मौका देखकर मैंनें उससे पूछा ..बेटा ,इतना उदास क्यों रहती हो ?सुनकर डबडबाई आँखों से बोली ..आंटी ,मैं सुंदर नहीं हूँ न ,इसलिए मुझे कोई प्यार नहीं करता , न घर में और न बाहर । सब मुझे काली -कलूटी कह कर चिढाते हैंं और मेरी खुद की माँ कहती है कौन करेगा तुझसे शादी ? और रोज न जाने कौन -कौन से नुस्खे गोरा होने के मुझ पर प्रयोग करती है ....तंग आ गई हूँ मैं तो । 
 तभी एक बडी -सी काली बदली आई और जोर से बरसात होने लगी ..मैंनें कहा चलो कही शेड के नीचे चलते हैं ..वो बोली आप जाइये मैं यहीं बैठी हूँ शायद बारिश से मन कुछ शांत हो जाए ...। और वो वहीं बैठी रही । मैंनें महसूस किया मानों वो बादल से पूछ रही है......
     ओ..बादल .....
  क्या इस बार तेरी लिस्ट में
   नाम है मेरा ?
   मेरे मन के कोने-कोने को भिगोने का 
मैं भी मन के किसी कोने में 
तेरी नमी महसूस करूँ 
   मेरा भी मन करता है 
   कोई मुझको प्यार करे ,
  स्नेह दे ....
  मैं खूबसूरत नहीं ,
  क्या ये दोष है मेरा ?
  कितना बुरा लगता है मुझे 
    क्या तुम्हे पता है....?
  मैं भी कुछ उदास हो गई .....समझ नहीं पा रही ...क्यों करते हैं हम ये भेदभाव ?जानबूझ या अनजाने में क्यों किसी का दिल दुखाते हैं? क्या रंग -रूप हमारे हाथों में है ?बंद होना चाहिए ये सब ?क्या गोरा या सुंदर होना ही इंसान के अच्छा होने का सबूत है ?

 .शुभा मेहता 
 25th Nov ,2020

37 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 26 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद यशोदा जी ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।

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    2. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।

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  3. सुन्दरता के पैमाने नहीं होते। सुन्दर।

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  4. ये भी समाज की एक गूढ़ समस्या है..।बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति..।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२६-११-२०२०) को 'देवोत्थान प्रबोधिनी एकादशी'(चर्चा अंक- ३८९७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता ।

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  6. प्यार ही खूबसूरती का कारण, खूबसूरती प्यार का कारण नहीं। यहीं प्यार की खूबसूरती है।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद विश्ववमोहन जी .

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  7. मेरे मन के कोने-कोने को भिगोने का
    मैं भी मन के किसी कोने में
    तेरी नमी महसूस करूँ
    मेरा भी मन करता है
    कोई मुझको प्यार करे ,
    स्नेह दे ....
    सुन्दरता के साथ आत्मीयता लि
    सहृदय कविता

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    1. बहुत-बहुत आभार सधु जी ।

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    2. बहुत-बहुत आभार सधु जी ।

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  8. ये समाज देश और जहाँन में फैली मृगतृष्णा है, और इसी के पीछे लाखों प्रोडेक्ट विज्ञापन करते हैं।
    आपकी रचना बहुत गहन चिंतन परक है काश दुनिया समझ पाती ।
    सुंदर हृदय स्पर्शी सृजन शुभा जी।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कुसुम जी ।

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  9. वाकई बाहरी रूप के पीछे जितना समय और पैसा हम लगाते हैं मन को सुंदर बनाकर बिना किसी भेदभाव के सबसे प्रेम करना सीखने में उसका एक अंश भी लगाएं तो समाज बदल सकता है.

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी ।

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  10. सुंदरता की क्या कोई परिभाषा है ! यह सब तो देखने वाले की चाहत पर निर्भर है ! कभी-कभी हमारी नकारात्मक सोच ही हमें परेशान कर देती है

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  11. बहुत ही गहन चिन्तनपरक लाजवाब भावाभिव्यक्ति
    कहते हैं सुन्दरता देखने वाले की आँखों में होती है
    और देखने वाला वही देखता है जो हम उसे दिखाते हैं.....हमें समाज के सामने अपनी खूबियों को उजागर करना होगा....।

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  12. मैं भी मन के किसी कोने में
    तेरी नमी महसूस करूँ
    मेरा भी मन करता है
    कोई मुझको प्यार करे ,
    बहुत बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति | शुभ कामनाएं |

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  13. हृदय स्पर्शी रचना

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    1. धन्यवाद ओंकार जी ।

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  14. किसी का गोरा-काला या सांवला होना या मोटा-पतला होना, यह बहुत गहरे से रचा-बसा सिर्फ एक दृष्टि दोष ही है जिससे सभी प्रभावित हैं।

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    1. जी ,सही बात है ।दृष्टि बदलनी तो होगी न ।

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  15. धन्यवाद शांतनु जी ।

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  16. शुभा दी, क्या पता हमारा समाज कब इंसान की आंतरिक सुंदरता देखना सीखेगा? बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  17. बहुत सुन्दर और सटीक

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  18. पता नहीं कब, क्यों और कैसे हमारे समाज में ऐसे भेद भाव उत्पन हो गए ... और जानते हुए भी की ये अच्छे नहीं ... चल रहे हैं हमारे बीच ... काश बदलाव जल्दी ए ...

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  19. आपकी इस उत्कृष्ट रचना पर विलम्ब से आने का मुझे खेद है शुभा जी । किसी का दिल दुखाने से ज़्यादा अफ़सोसनाक काम कोई नहीं । किसी का भी दिल दुखाने से पहले सोचना चाहिए कि जब कोई हमारा दिल दुखाता है तो कैसा लगता है ।

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