Tuesday 20 October 2015

वक़्त

     ये तो ववत -वक़्त की बात है
      कभी मिलता है तो कभी मिलाता है
      कभी खामोश सा बैठाता है
       कभी कहकहे लगवाता है
      तो कभी अनायास रुलाता है
        कभी उलझे रिश्तों को सुलझाता है
        तो कभी खुद ही को खुद से लड़ाता है
        और ,गुजरते -गुजरते
       दे जाता है ज़बीं पे लकीरें कुछ
      साथ में बहुत कुछ सिखा भी जाता है
     अच्छा ,बुरा बस गुज़र ही जाता है ।
  

5 comments:

  1. बेहद भावनात्मक रचना है।

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  2. और ,गुजरते -गुजरते
    दे जाता है ज़बीं पे लकीरें कुछ
    साथ में बहुत कुछ सिखा भी जाता है
    अच्छा ,बुरा बस गुज़र ही जाता है ।
    waaaaaaaaaaah its superb

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  3. स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर ।धन्यवाद ।

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  4. स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर ।धन्यवाद ।

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