Wednesday 16 March 2016

जिदंगी

    सुबह -सुबह आज
    कोई  मिली  मुझे
     मैंने देखा उसे
       बड़ी खूबसूरत सी
       सजी -सँवरी सी
       ग़ौर से देखा मैंने
       कोशिश की पहचानने की
      शायद , कहीं देखा है
       सोचा , चलो उसी से
      पूछते हैं
      मैंने पूछा कौन हो तुम ?
      लगती तो पहचानी सी हो
     बोली , अरे मैं ज़िन्दगी हूँ
    तुम्हारे साथ ही तो रहती हूँ
     पर तुमने तो जैसे मुझे
      जीना ही छोड़ दिया
     कहाँ है वो ख़ुशी
      कुछ उदासीन से
      रहते हो अरे ,
     जब तक मै हूँ साथ
     हँस लो , मेरा लुत्फ़ उठा लो ।
 
      शुभा मेहता
 
    
   

3 comments:

  1. वाह बहुत बहुत बढ़िया क्या बात है अब तेरी कलम जोर पकड़ती जा रही है खूबसूरत अभिव्यक्ति सरल साफ सीधे शब्दों में जियो बहुत जियो मजा आ गया बहन 👏👏👏👏💐💐💐💐😘😘😘😘

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ९ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता ।

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