मुट्ठी में बंध रेत
खिसक रही है
धीरे -धीरे
बना रही है
कुछ निशाँ
शायद अपना नाम
लिख रही है
पढ़ रही हैं उसे
अचानक , तेज
लहर ने आकर
मिटा दिया
वो नाम , वो निशाँ
कुछ न था शेष
खोली मुट्ठी
तो पाया
हाथ रीता
न नाम न निशाँ ।
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