Saturday, 23 April 2016

किताबें

वो कहते हैं कि
  नहीं बेहतर
दोस्त कोई
   मुझ जैसा
जिसने भी की
  दोस्ती मुझसे
   वो हमेशा
    सुख पाया
    अरे नहीं पहचाना?
     मैं हूँ  किताब
     पर आजकल
     हो गई हूँ जरा
     एकाकी
      लोगों को हो गया है
      जरा कम मुझसे लगाव
       पड़ी रहती हूँ
     रैक पर , उपेक्षित सी
       क्योकि आजकल
     मेरी जगह है
     इंटरनेट, टीवी
      कुछ लोग सिर्फ
     दिखावे के लिए
     सजाते है मुझे
     कुछ लोग
     बेच डालते है
     रद्दी में
   मुझ में संचित
    ज्ञान के बदले
    कुछ पैसे पाकर
     खुश हो लेते
     थोडा इत्मिनान है
   कुछ लोग तो हैं
   अभी भी
   जिन्हें है मेरी क़द्र
    जो चाहते है
    अभी भी मेरा साथ
    चलो इसी बात से
    मैं खुश हूँ
    मैं हूँ किताब .........
   

10 comments:

  1. मुझे फिर से स्कूल का बस्ता थामा दो न "माँ",
    मुझे ज़िन्दगी का सबक बहुत मुश्किल लगता है ।

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    1. धन्यवाद राजेशजी ।

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    2. धन्यवाद राजेशजी ।

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  2. सुंदर अभिव्यक्ति। पुस्तकों का हमारे जीवन में अधिक महत्व हैं। अकेलेपन में पुस्तकें हमारे जीवन में मित्र का काम करती हैं।

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    1. धन्यवाद हिमकरजी

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    2. धन्यवाद हिमकरजी

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  3. सुंदर रचना के साथ सुंदर अभिव्‍यक्ति। हमारे जीवन में पुस्‍तकों का क्‍या महत्‍व हैै, इसे आपने बखूबी समझाया है। पर भारत मैं अधिकांशत: लोग पुस्‍तकें पढ़ने में रूचि नहीं लेते। कम से कम उन्‍हें इस मामले में अंग्रेजों से जरूर सीखना चाहिए।

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  4. स्वागत् है आपका मेरे ब्लॉग पर । बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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  5. स्वागत् है आपका मेरे ब्लॉग पर । बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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  6. सुंदर एवं सामायिक रचना .......

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