मैं , उडता पंछी
दूर....दूर .....
उन्मुक्त गगन तक
फैलाकर अपनी पाँखें
उड़ता हूँ
कभी अटकता
कभी भटकता
पाने को मंजिल
इच्छाएँ ,आकांक्षाएँ
बढती चली जातीं
और दूर तक जाने की
खाता हूँ ठोकरें भी
होता हूँ घायल भी
पंख फडफडाते हैं
कुछ टूट भी जाते हैं
और फिर , अपना सा कोई
कर देता है
मरहम -पट्टी
देता है दाना -पानी
जरा सहलाता है प्यारसे
जगाता है फिर से प्यास
और ऊपर उड़ने की
और मैं चल पड़ता हूँ
फिर से पंख पसार
अपनी मंजिल की ओर ....।
शुभा मेहता
19th Nov .2016
वाह.... क्या अभिव्यक्ती है कितनी ऊर्जा भरी पंक्तियाँ है सुन्दर अति सुन्दर कायल हो गया हूँ तेरी शैली का। बहुत बहुत प्यार एवं दुलार । खुश रह सुखी रह।💐💐☺☺☺💐💐
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, शुभा!
ReplyDeleteस्वागत है आपका मेरे ब्लौग पर ज्योति । बहुत -बहुत धन्यवाद ।
Deleteयशोदा जी मैं आपकी बहुत आभारी हूँ , मेरी रचना को पाँच लिंकों के आनंद मेंं स्थान देने के लिए । बहुत -बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत आभार आपका सावन कुमार जी ।
ReplyDeleteशुभा जी बहुत ही अच्छी कविता है। आपको बधाई।
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteसुन्दर रचना ।
ReplyDeleteबहुत आभार आपका सुशील कुमार जी ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता है | धन्यवाद |
ReplyDeleteस्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर । बहुत -बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteस्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर । बहुत -बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद ।
Deleteकमाल का पोस्ट है साहब , ऐसा पोस्ट पढने की हार्दिक इच्छा थी मेरी। . मेरी उम्मीद है अब आपसे की पोस्ट निरंतर करे,
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद त्रिपाठी जी ।स्वागत है आपका तमेरे ब्लॉग पर।
Deleteआनंद मयी बिचार है इस कबिता में। . दिल को छू लिया आपकी कबिता ने !!
ReplyDeleteफेसबुक में मेरा भी एक पेज चल था है दिल की बात
धन्यवाद त्रिपाठी जी।
Deleteबहुत सुन्दर शुभा जी
ReplyDeleteआभार सुधा जी । स्वागत है मेरे ब्लॉग पर आपका
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