Saturday 26 November 2016

उड़ता पंछी

   मैं , उडता पंछी
    दूर....दूर .....
    उन्मुक्त गगन तक
     फैलाकर अपनी पाँखें
    उड़ता हूँ
      कभी अटकता
       कभी भटकता
       पाने को मंजिल
      इच्छाएँ ,आकांक्षाएँ
      बढती चली जातीं
      और दूर तक जाने की
      खाता हूँ ठोकरें भी
      होता हूँ घायल भी
      पंख फडफडाते हैं
     कुछ टूट भी जाते हैं
      और फिर , अपना सा कोई
     कर देता है
      मरहम -पट्टी
     देता है दाना -पानी
    जरा सहलाता है प्यारसे
   जगाता है फिर से प्यास
    और ऊपर उड़ने की
     और मैं चल पड़ता हूँ
      फिर से पंख पसार
    अपनी मंजिल की ओर ....।

                 शुभा मेहता
                19th Nov .2016

20 comments:

  1. वाह.... क्या अभिव्यक्ती है कितनी ऊर्जा भरी पंक्तियाँ है सुन्दर अति सुन्दर कायल हो गया हूँ तेरी शैली का। बहुत बहुत प्यार एवं दुलार । खुश रह सुखी रह।💐💐☺☺☺💐💐

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, शुभा!

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    1. स्वागत है आपका मेरे ब्लौग पर ज्योति । बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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  3. यशोदा जी मैं आपकी बहुत आभारी हूँ , मेरी रचना को पाँच लिंकों के आनंद मेंं स्थान देने के लिए । बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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  4. बहुत आभार आपका सावन कुमार जी ।

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  5. शुभा जी बहुत ही अच्छी कविता है। आपको बधाई।

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  6. बहुत -बहुत धन्यवाद।

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  7. बहुत आभार आपका सुशील कुमार जी ।

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  8. बहुत ही सुंदर कविता है | धन्यवाद |

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  9. स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर । बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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  10. स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर । बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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  11. Replies
    1. बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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  12. कमाल का पोस्ट है साहब , ऐसा पोस्ट पढने की हार्दिक इच्छा थी मेरी। . मेरी उम्मीद है अब आपसे की पोस्ट निरंतर करे,

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    1. बहुत -बहुत धन्यवाद त्रिपाठी जी ।स्वागत है आपका तमेरे ब्लॉग पर।

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  13. आनंद मयी बिचार है इस कबिता में। . दिल को छू लिया आपकी कबिता ने !!
    फेसबुक में मेरा भी एक पेज चल था है दिल की बात

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    1. धन्यवाद त्रिपाठी जी।

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  14. बहुत सुन्दर शुभा जी

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    1. आभार सुधा जी । स्वागत है मेरे ब्लॉग पर आपका

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