सिर पर ईंटों को ढोता
चिलचिलाती धूप हो
या आँधी -तूफान
बरस रहा हो या
मेघ अविरत...
करना है
उसे तो काम
रोटी का सवाल है भाई
उसका छोटा बच्चा भी
दो ईंटें उठाए
चल रहा पीछे -पीछे
ढीली चड्डी
खिसकती जाती
पकड़ नहीं पाता
हाथ जो बोझ से लदे हैं
बहती नाक और पसीना
एक हुआ जाता
बनाता आशियाना
औरों का
खुद का पता नहीं
कभी यहाँ ,कभी वहाँ
शायद इधर -उधर में
जीवन पूरा हो जाएगा
उसे तो पता भी न होगा
मजदूर दिवस है आज.....
शुभा मेहता
1st May ,2017
A very nice tribute to labours on this day of nay diwas majdoor hmesha ek anishchit jiwan hi jeeta rha auro is ashiyana bnata aur khud khanabadosh ki tarah dar dar ki thokrein aur dutkar utpidan aur n jaane kya kya sahta bahut marmik aaklan kiya h bhasha sahaj saral aur ati sundar abhivyakti ki teri koi misaal nhi h bahut deerghayu ho khush rah punjab ke khet khalihan dekh aaj kal wahin rami huyi h aur bhi prerna milegi likhne ki dher saara pyaar
ReplyDeleteBahut hi maarmik aur sthiti ka bahut achcha chitran kiya aapne shabdon mein dhaal ke.
ReplyDeleteDhanyawad Hemant ji
Deleteबहुत ही मार्मिक वास्तव में यही है एक मजदूर की कहानी
ReplyDeleteDhanyawad Ritu ji
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुन्दर व जीवंत वर्णन, आभार। "एकलव्य"
ReplyDeleteधन्यवाद ध्रुव जी ।
Deleteबहुत सुन्दर रचना..... आभार
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई रचना पर आपके विचारों का इन्तजार।
बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteसटीक और सार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद।
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ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद यशोदा जी ।
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