Saturday, 27 January 2018

किसान .....

रंग बिरंगे फूल खिले हैं
खेतों और खलिहानों में
आमों पर भी बौर आ गए
  कोयल कूके डालों पर
चारों ओर छाई हरियाली
कोमल कोमल प्यारी प्यारी
दूब लगे कालीन समान
  गेहूँ की बालें लहराएं
   मस्त हवा के झोंके से
    वाह..........
   कितना सुंदर दृश्य मनोरम
    धरती लगती कितनी सुंंदर
   पर वो किसान ..
   जो है हम सबका पालनहार
  करता खून पसीना एक
   खेतों को लहराने मेंं
   अन्न धान उगाने मेंं
  क्यों है उदास ?
क्यों है विवश
कर्ज में डूबा
  अपनें  ही लगाए
  पेडों पर
    लटक जानें को
   आत्मदाह कर जाने को
   छोड़ जाने को
   रोते बिलखते
   बच्चों को ...

  शुभा मेहता
  27 th January ,2018
  
   
  
   
  
 

18 comments:

  1. Kisan ki trasadi toh sadiyon purani hai aur ham ek mook darshak ek ati atma kendrit samaj mein parinat hote gye badi badi attalikayein banane walon ko jhuggi jhopdi aur bhrastachar mein lipt logon ko attalikayein khud bacha khana fenk dein aur use kheton mein ugane wala bhooka soye yahi vidambana hai trasdi aur atyachar ki parakashtha h bahut badhiya betaa yahi mein kahta thha ki teri kalam ko dhar daar bna samaj ko uska aeina dikha aur mujhe khushi gai ki iss kavita ke madhyam se toone kiya paripakvata aur rekha chitran adbhut hai shabdon ka chayan uchit aur prasangik dikha khoob likh bahen mujhe garv hitai tujhpar bahut bahut pyaar aur ashirwad 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐👏👏👏👏👏👏👏

    ReplyDelete
  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २९ जनवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार', सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    ReplyDelete
  3. बहुत बहुत धन्यवाद ध्रुव जी ..मेरी रचना को इस मंच पर स्थान देने के लिए ।

    ReplyDelete
  4. वाह्ह्ह...शुभा दी..क्या खूब..👌
    किसान तो धरा की आत्मा है...अन्नदाता को ही अन्न के दाने के लिए संघर्षरत देखना निश्चय ही हृदयविदारक है।
    मर्मस्पर्शी रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद श्वेता जी ।

      Delete
  5. बहुत सुंदर मनमोहक रचना
    बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद नीतू जी ।

      Delete
  6. क्यों है विवश
    कर्ज में डूबा
    अपनें ही लगाए
    पेडों पर
    लटक जानें को
    आत्मदाह कर जाने को
    छोड़ जाने को
    रोते बिलखते
    बच्चों को ...
    बहुत मर्मस्पर्शी रचना शुभा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद ज्योति ।

      Delete
  7. मार्मिक प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

      Delete
  8. बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

      Delete
  9. बहुत मर्म स्पर्शी रचना । सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

      Delete
  10. दिल को छूती हुयी रचना ...
    दुर्भाग्य है देश का अन्न पैदा करने वाले सब को भोजन देने वाला आज सबसे निरिह है ...

    ReplyDelete