मन महक उठा
माटी की सौंधी खुशबू से
बादलों के खुले नलों से
जब बूँदें गिरी अवनि पर
भिगो गई सूखी माटी को
कोई भी इत्र इस खुशबू को
मात नही दे सकता ।
मन महक उठा
खिल उठी सारी बगिया
पंछी गाते....
गुनगुनाते...
चिडिया चहकचहक कर
पानी में नहाती
गरमी से राहत पाती ।
शुभा मेहता..
10 June,2018
वाह्ह्ह..पहली बारिश...बहुत सुंदर दी👌👌
ReplyDeleteतपत धरा पर नेह मेघ के जमकर बरसे आज
छम-छम नाचे मन बिन घुँघरू साँस बजे बिन साज
बहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता ...अरे वाह!!
Deleteबहुत सुंदर 👌👌
माती की सोंधी खुशबू तो मन मयूर को नाचने पे मजबूर कर देती है ....
ReplyDeleteभावपूर्ण ...
बहुत-बहुत आभार आपका दिगंबर जी ।
Deleteपहली बारिश का बहुत ही सुन्दर वर्णन, शुभा। तुमने अपने ब्लॉग पर ई मेल सब्सक्रिप्शन का विजेट नहीं लगाया हैं। हमें तुम्हारी नए पोस्ट के बारे में पता ही नहीं चलता। अतः ये विजेट लगाए।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति । जरूर लगाऊँगी..।
Deleteमन महक उठा
ReplyDeleteमाटी की सौंधी खुशबू से
बादलों के खुले नलों से
कोमल भावनाएँ शब्दों से बाहर झांकती हुई , होठों पर स्मित मुस्कान बिखेरने में सफल....शानदार प्रस्तुति।
बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी ।
Deleteवाह ,पहली बारिश पर बहुत मनमोहक कविता
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबढ़िया जीजी 👌👌👋👋👋
ReplyDeleteधन्यवाद भाई ।
Deleteतपती धरती पर वर्षा की पहली फुहार ,उससे धरती माँ के आँचल रूपी मिट्टी से उठती सौंधी महक वास्तव में भूत मनमोहकि होती है
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