Sunday, 10 June 2018

मेघा

  मन महक उठा
  माटी की सौंधी खुशबू से
   बादलों के खुले नलों से
   जब बूँदें गिरी  अवनि पर
   भिगो गई सूखी माटी को
   कोई भी इत्र इस खुशबू को
   मात नही दे सकता ।
    मन महक उठा
     खिल उठी सारी बगिया
      पंछी गाते....
     गुनगुनाते...
    चिडिया चहकचहक कर
     पानी में नहाती
     गरमी से राहत पाती ।
  
    शुभा मेहता..
    10 June,2018
   
   

  

13 comments:

  1. वाह्ह्ह..पहली बारिश...बहुत सुंदर दी👌👌

    तपत धरा पर नेह मेघ के जमकर बरसे आज
    छम-छम नाचे मन बिन घुँघरू साँस बजे बिन साज

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता ...अरे वाह!!
      बहुत सुंदर 👌👌

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  2. माती की सोंधी खुशबू तो मन मयूर को नाचने पे मजबूर कर देती है ....
    भावपूर्ण ...

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका दिगंबर जी ।

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  3. पहली बारिश का बहुत ही सुन्दर वर्णन, शुभा। तुमने अपने ब्लॉग पर ई मेल सब्सक्रिप्शन का विजेट नहीं लगाया हैं। हमें तुम्हारी नए पोस्ट के बारे में पता ही नहीं चलता। अतः ये विजेट लगाए।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति । जरूर लगाऊँगी..।

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  4. मन महक उठा
    माटी की सौंधी खुशबू से
    बादलों के खुले नलों से
    कोमल भावनाएँ शब्दों से बाहर झांकती हुई , होठों पर स्मित मुस्कान बिखेरने में सफल....शानदार प्रस्तुति।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी ।

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  5. वाह ,पहली बारिश पर बहुत मनमोहक कविता

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  6. बढ़िया जीजी 👌👌👋👋👋

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  7. तपती धरती पर वर्षा की पहली फुहार ,उससे धरती माँ के आँचल रूपी मिट्टी से उठती सौंधी महक वास्तव में भूत मनमोहकि होती है

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