इक बीज के हृदयतल में
बसता है इक छोटा अंकुर
अलसाया सा....
सोता हुआ.....
उठो ,उठो ..
रवि नें आकर चुपके से कहा
उठो ,उठो ....
वर्षा की बूँदों नें
आवाज़ लगाई ....
सुना उसने ..
सोचने लगा ..
इस बीज के बाहर
कितना सुंदर जग होगा !!
वर्षा की बूँदों से
सूरज की किरनों से
इक बीज अंकुरित हुआ
जग को जिलाने ..
छाँव दिलाने.।
शुभा मेहता
Excellent words chosen are apt and shows how proficient you are are how vast is your understanding of poetry and how volumumous is your dictionary keep it up bahut acche 😘😘😘😘👏👏👏👏👏💐💐💐💐💐
ReplyDelete😊😊
Deleteशुभा,बीज के अंकुरण को बहुत ही खुबसुरती से व्यक्त किया हैं तुमने!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति ।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रितु जी ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २५ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
धन्यवाद श्वेता ।
Deleteकोमल भावों की सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी ।
Deleteबहुत सुन्दर कविता शुभा जी - सच में हम सभी में एक ऐसा अंकुर मौजूद है - ज़रूरत है तो एक सूर्य की, उसे जगाने के लिए - बड़े सार्थक शब्द हैं |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteसुंदर ...
ReplyDeleteआशा और उम्मीद लिए ये अंकुर प्रेरित करता है जीवन जीने को ... इस अंकुर से मन को भी जीवित रखना जरूरी होता है मन में ...