Wednesday, 24 April 2019

वेदना

खुला गगन था
  बादल थे
  मेघधनुष भी था
   पानी था
    कलकल बहता
    बस नही था कोई
   तो बस वो तुम थे
    पर ,यादों की चादर थी
     कुछ धुंधली ,कुछ उजली
      चादर ओढ़ उनमें झाँकने की
      कोशिश करती मैं थी
        कह कर गए तो थे
         लौटूंगा ....
          बरसों बीते
           व्यर्थ इंतजार
          कहाँ छुपाऊँ
        मन की वेदना ...
        शायद ,इसीलिए
          यादों की चादर से
          ढाँप लेती हूँ खुद को ।

      शुभा मेहता
      25th April ,2019

         
    

21 comments:

  1. Vedana prem aur virah teeno ka adbhut chitran aur bahut hi khubsurati se shabdon ka jaanj pehnaya bahut bdhiya bahena likhe jaa yun hi dherum dher pyaar 😘😘😘😘👏👏👏👏👏💐💐💐💐💐😊😊😊😊😊

    ReplyDelete
  2. प्रेम भरी विरह वेदना को बहुत ही सुंदर शब्दों में पिरोया हैं आपने, शुभा दी👌👌।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद ज्योति ।

      Delete
  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-04-2019) "परिवार का महत्व" (चर्चा अंक-3318) को पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    --अनीता सैनी

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद प्रिय सखी अनीता जी ।

      Delete
  4. कह कर गए तो थे
    लौटूंगा ....
    बरसों बीते
    व्यर्थ इंतजार
    कहाँ छुपाऊँ
    मन की वेदना ... बेहतरीन रचना सखी 👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सखी ।

      Delete
  5. वाह! बहुत सुंदर शुभाजी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद विश्व मोहन जी ।

      Delete
    2. बहुत बहुत धन्यवाद विश्व मोहन जी ।

      Delete
  6. कहाँ छुपाऊँ
    मन की वेदना ...
    शायद ,इसीलिए
    यादों की चादर से
    ढाँप लेती हूँ खुद को ।...
    बेहतरीन लेखन, भावपूर्ण । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय शुभा जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद पुरुषोत्तम जी ।

      Delete
  7. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  8. बहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता । जरूर आऊँगी ।

    ReplyDelete
  9. प्रेम में विरह वेदना को झेलती हुई नायिका की सरल सहज अभिव्यक्ति। सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  10. विकल मन को जैसे समेट लिया हो गहन अंतर वेदना तक बस स्वयं के अंदर।
    बहुत बहुत हृदय स्पर्शी रचना शुभा जी।
    बधाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कुसुम जी ।

      Delete
  11. बहुत ही भावपूर्ण सृजन प्रिय शुभा जी -- ये पंक्तियाँ तो विरह से सराबोर हैं जो इन्तजार में व्याकुल मन की दशा को सहजता से प्रकट करती हैं |
    कह कर गए तो थे
    लौटूंगा ....
    बरसों बीते
    व्यर्थ इंतजार
    कहाँ छुपाऊँ
    मन की वेदना ...
    शायद ,इसीलिए
    यादों की चादर से
    ढाँप लेती हूँ खुद को
    सादगी से कही गयी इस रचना के लिए सस्नेह बधाई और शुभकामनायें | गूगल प्लस के जाने के बाद मुश्किल से ही आपके ब्लॉग पर आ पाती हूँ | सस्नेह

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय रेनू जी ।

      Delete
  12. शायद ,इसीलिए
    यादों की चादर से
    ढाँप लेती हूँ खुद को ।...
    बेहतरीन लेखन खूबसूरत पंक्तियाँ हैं

    ReplyDelete