Saturday, 27 April 2019

चवन्नी (लघुकथा)

माँ ,मुझे सौ रुपये चाहिये ,कलर्स लेने हैं कल ड्रॉइंग की परीक्षा है ,। जा ,मेरे पर्स में से ले ले , मैं खाना बना रही हूँ , मैंने रोटी बेलते हुए रानी से कहा ।
माँ ,तुम ये चवन्नी अपने पर्स में हमेशा क्यों रखती हो ?रानी नें पैसे निकालते हुए पूछा । 
बेटा इस चवन्नी का मेरे जीवन में  बहुत महत्व है ,बहुत बडी सीख दी है इस चवन्नी ने मुझे ..
बताओ न माँ ..भला चवन्नी से क्या सीख मिली आपको ....ठीक है बताती हूँ ,मैंनें गैस बंद करते हुए कहा ....
  बात उन दिनों की है जब मैं छठी कक्षा में पढती थी । हम एक संयुक्त परिवार में रहते थे । स्कूल के लिए हमें घर से टिफिन मिलता था जिसमें पराँठा और अचार मिलता था रोज ही । हमारे स्कूल के अंदर एक चाट के ठेले वाला भी आया करता था ,जो समोसे ,पापड़ी चाट लाता था ,चवन्नी मेंं मिलती थी एक प्लेट । बहुत सी लडकियां खाने की छुट्टी में ठेले के इर्दगिर्द खडी होकर मजे ले कर खाया करती थी ।मन तो हमारा भी बहुत करता था ,पर हमें तो बस पराठे आचार से ही संतोष करना पडता था ।
   एक दिन मेरी एक सहेली बोली ,तू क्या रोज -रोज यही खाती है ,चल आज समोसे खाने चल । मैं बोली ,मेरे पास पैसे  नही है ..उसनें कहा चल मै खिलाती हूँ तुझको ...
  मन तो होता ही था ,मैं भी चल दी उसके साथ ..
वाह क्या आनंद आया था ..पर सारा आनंद तब फुर्र हो गया जब बाद मेंं उसने कहा कि कल मेरी चवन्नी वापस करना । मैं तो जैसे आसमान से गिरी । घर पर जाकर कैसे कहूँगी ...। कोस रही थी अपने चटोरेपन को ।
  खैर दो -तीन दिन तो उससे झूठ बोलती रही कि भूल गई ,पर कितने दिन । तीसरे दिन तो उसने धमकी दे डाली ,कि कल नहीं लाई तो वो मैडम से कह देगी
  अब तो कोई चारा नहीं था ,डरते-डरते माँ को बताया , 
पहले तो पडी डाँट,फिर माँ ने पैसे देते हुए समझाया कि आगे से ऐसा मत करना ।
मैंने खुशी -खुशी चवन्नी अपने बस्ते मेंं संभाल कर रखी ,और सोचने लगी कि कल जाते ही चवन्नी दे दूंगी ।
ठीक ही तो है माँ , इसमें आपने सबक क्या सीखा ।
सीधे सीधे किस्सा खत्म । रानी ने मुझे बीच में ही टोका ।
नहीं बेटा,असल बात तो अब शुरु होती है ।
तो फिर क्या हुआ ?रानी अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रही थी ।
होना क्या था बेटा ,मैंने भी मन ही मन उसे चिढाने का सोचा । स्कूल जाते ही बोली ..अरे आज भी मैं तेरे पैसे भूल गई ..वो बोली चल मैडम के पास ..मैं फिर उसे चिढाते हुए बोली , नहीं आती बोल ...।
  हमारी ये बहस चल ही रही थी ,तभी हमारी मैडम ने क्लास में प्रवेश किया ।
  हाजिरी के बाद आखिर उसनें मैडम से कह ही दिया कि ये मेरी चवन्नी वापस नहीं कर रही । मैं ने झट से कहा नहीं मैडम मैं दे रही हूँ । और अपना बस्ता खोलकर चवन्नी निकालने लगी ,पर चवन्नी मिली नहीं ,मैंने सारा बस्ता ढूँढ मारा ,अब तो मैं रुआंसी हो गई ,मैडम से कहा मैं लाई थी पर जाने कहाँ गई ।
मेरी बात मानने को कोई तैयार नहीं था ,क्योंकि थोड़ी देर पहले मैंनें ही कहा था कि ,मैं नहीं लाई ।
तभी मेरे पीछे बैठी मेरी सहपाठिनी को नीचे चवन्नी पडी दिखाई दी ,वो चिल्लाई ..वो रही......।
और मैंनें सबके सामने उसे चवन्नी लौटाई ।
शायद बस्ता खोलते वक्त गिर गई होगी ।
चवन्नी से मैं ने यही सबक सीखा कि ...कभी किसी से उधार नहीं लेना ,वो भी स्वाद के लिए ?कभी नही ।
पैसों के मामले में कभी मजाक मत करना। लेने के देने पड सकते है ।
बात तो आपकी सही है माँ ,रानी मुस्कुराती हुई कलर्स लेने चली गई ।

शुभा मेहता
1st May ,2019

27 comments:

  1. Chlo tera ye roop bhi pathakon ko dekhne ko mila accha lwkh hai chota ho bhale seekh deti hain teri kavitayen aur ab tere chukte chuke lekh bahut badhiya khoob likh ye bhi samaaj ki sewa hi hai apne anubhavon ko saajha karna 👏👏👏👏👏😘😘😘😘💐💐💐💐💐😊😊😊😊😊

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    1. आशीर्वाद बनाए रखिये ।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 2 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद रविन्द्र जी ,मेरी रचना को साझा करने के लिए ।

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  3. सच ,शुभा जी हमारे वक़्त चवन्नी के भी बहुत महत्व थे और छोटी छोटी घटनाये हमारे मन पर गहरा असर छोड़ती थी ,बहुत सुंदर प्रेरणादायक कहानी ,सादर

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी ।

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  4. वाह! आपकी कहानी पढ़कर मुझे किशोर कुमार वाला गाना याद आ गया। - ' पांच रुपैया बारह आना ' !

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    1. धन्यवाद विश्वमोहन जी ।

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  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण कहानी सखी👌👌

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    1. धन्यवाद प्रिय सखी ।

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  6. वाहह्ह्ह दी..कितनी सुंदर और संदेशपूर्ण कहानी लिखी है आपने..लिखने की शैली भी रोचक लगी..और भी कहानी लिखिए दी। शुभकामनाएँ मेरी।

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    1. धन्यवाद श्वेता ।

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  7. वाह!संदेशपरक कहानी बहुत बढ़िया..

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    1. बहस-बहुत धन्यवाद ।

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  8. बहुत अच्छा लिखा है। संदेश और सीख देती सुंदर कहानी।

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    1. धन्यवाद मीना जी ।

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  9. बहुत प्रेरक शुभा जी में जिंदगी में छोटी छोटी बातें कितना कुछ सिखा देती है सटीक और बेहतरीन।
    सुंदर कथा या प्रसंग ।

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    1. धन्यवाद प्रिय सखी ।

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  10. बहुत सुन्दर संदेश देती भावपूर्ण लघुकथा ...।

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  11. बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी ।

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  12. बहुत रोचक लघु कथा शुबहा जी ! हमारे बचपन में तो (आज से 60 साल पहले) तो इकन्नी का भी बड़ा रुतबा होता था. पिताजी उसूलों वाले मजिस्ट्रेट थे. हमको महीने में 2 रूपये पॉकेट मनी मिलता था और उसमें भी हमारे बड़े भाई साहब होम लाइब्रेरी के लिए 1 रुपया हमसे ले लेते थे. हाँ, हमने उधार कभी खाया नहीं और कभी किसी को उधार दिया भी नहीं.

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।

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  13. वाह, बहुत खूब

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी ।

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  14. शुभा दी,बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक कहानी लिखी हैं आपने।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति ।

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  15. सीख देती सुंदर कहानी

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