Thursday 29 May 2014

सत्संग

सत्संग ,वैसे तो इस शब्द में ही अर्थ छुपा हैं ।सरल भाषा में अगर कहें तो अच्छी सगंत । वो कहते है न कि जैसा संग वैसा रंग । अगर लोहे को कुछ समय के लिए चुंबक के पास रखा जाए तो उसमें भी चुंबकत्व आनें  लगता है । एक सडा हुआ फल अपने पास रखे सभी फलों को सडा देता है ।
   जब दो या अधिक व्यक्ति एक साथ कुछ समय बिताते हैं तो धीरे-धीरे उन पर एक दूसरे की आदतों का असर होने लगता है । क्योंकि जब बार-बार एक ही व्यक्तिसे मिलना होता है तब प्राण,श्वास का आदान -प्रदानहोता है  और हमारी "औरा' के रंग में परिवर्तन दिखाई देता है जैसे पीला जब नीले से मिलता है तो हरा रंग बनता है ,और यही पीला जब काले रंग से मिलता है तो भूरा बन जाता है । कहने का अर्थ यह है कि संगत का असर पडने लगता है ।
  अब मैं बात करना चाहूँगी उस सतसंग की जो अधिकतर महिलाएं अपने मोहल्लों अथवा सोसायटी में करती हैं  जिसमें एक -आध घंटे सकारात्मक विचारों  ,अच्छे व्यवहार आदि पर विचार व्यक्त किए जाते है ।लेकिन उनका असर कितने लोगो पर होता है ?जैसे ही बाहर निकले वही सास-बहू के किस्से या बुराई अभियान शुरू ।  
       इसीलिए हमेशा दूसरों के प्रति आदर भाव रखे ,अपना काम प्रामाणिकता से करें  यही सच्चा सतसंग है

  

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