Sunday 29 December 2013

योग और रोग (२)

कल अचानक रस्ते मे मेरी पुरानी सहेली मिल गई ।इतने सालों बाद मिलकर  बडी खुशी हो रही थी । पर मैनें देखा कि वह ठीक से नही चल पा रही थी ।पूछने पर उसनें बताया कि वह घुटनों के दर्द से परेशान है ।जब मैने उसकी दिनचर्चा के बारे मे पूछा तो वह बोली खाना और सोना ।हर काम के लिए नौकर हैं ।और मुझे उसके दर्द का कारण समझ में आ गया व्यायाम की कमी  ।
   दूसरी तरफ हमारी कमलाबाई है जो दिन भर चककरघिन्नी की तरह काम करती है पर खान पान में कमी । वो भी इसी तरह के दर्द  की शिकार है ।
   नियमित व्यायाम का अभाव और संतुलित आहार की कमी के कारण शरीर में केल्शियम की कमी होने लगती है । शारीरिक प्रवृति का स्तर जैसे-जैसे कम होता जाता है वैसे-वैसे हड्डियाँ कमजोर होती जाती है ।
     ओसटियोपोरोसिस -यह शब्द दो शब्दों से बना है  ओस्टीयो यानी हड्डी और पोरस यानी छिद्र वाली होना ।पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में यह तकलीफ अधिक पाई जाती है ।
    जब हम कोई भी व्यायाम करते है जैसे चलना,दौडना या फिर कोई भी मेहनत का काम करते हैं तो हमारे स्नायु हड्डियों को काम करने को प्रेरित करते हैं और उन्हें मजबूत बनाते है  ।
     ,सूक्ष्मव्यायाम जिसमे कंधों ,गले, कलाई ,घुटनों आदी का परिभ्रमण, बटरफ्लाई आदि का अभ्यास करने से लाभ मिलता है । वज्रासन भी काफी लाभदायक है ।प्राणायाम का अभ्यास ,दूध ,दही का सेवन और मन की प्रसन्नता यही है सुखी जीवन का मंत्र ।

Friday 27 December 2013

बचपन

कौन कहता है कि बचपन ,
    फिर से लौट नहीं आता ।
     आज जब भी मैं खेलती हूँ
      अपनी "आन्या',के साथ,
      लगता है जैसे मुझे मिल गया,
        फिर से मेरा बचपन ।
     कभी दौड़ा-दौडी ,कभी पकडा-पकडी ,
      कभी गुड्डा-गुड्डी ,कभी खाना -वाना,
        कभी मुसकुराना, कभी खिलखिलाना ।
         लगता है जैसे वो बचपन मेरा,
       लो फिर आ गया है,
        मेरा हाथ थामे चला जा रहा है ।

नूतन वर्ष

नये वर्ष की नई सुबह में ,
   गीत नये ,संगीत नया,
      नई मंजिलें ,नये रास्ते ,
         आशा और उमंग नई ।
       सोच नई हो ,नये इरादे
      काम करें कुछ नये-नये  ।
     जो वादे किए थे हमनें स्वयं से ,वर्षो से पिछले कई ,
   कि हम ये करेगें ,या वो करेंगे
   करें उनको पूरा इस नूतन वर्ष में ।
   यही है कामना तहेदिल से मेरी ,
   आनेवाला ये नूतन वर्ष ,शुभ हो सभी को ।

     

Tuesday 24 December 2013

मुद्रा विज्ञान

हमारा शरीर पाँच तत्व से बना है । जो है -अग्नि,वायु, आकाश,पृथ्वी और जल । हमारी पाँचों उंगलियाँ इन तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं । जो इस प्रकार हैं-
     अंगूठा --- अग्नि
      तर्जनी ---वायु
       मध्यमा--- आकाश
        अनामिका--- पृथ्वी
         कनिष्ठिका ---जल
       हमारे हाथों में से एक विशेष प्रकार की उर्जा निरंतर निकलती रहती है । विभिन्न उँगलियों द्वारा की जाने वाली  मुद्राओं से शरीर में स्थित चेतना शक्ति केन्द्रों को जाग्रत किया जा सकता है ।
     पाँच तत्वों के संतुलन से हम स्वस्थ्य रह सकते हैं । मुद्रा दोनो हाथो से करनी चाहिए ।इन्हें करते समय उँगलियों और अंगूठे का स्पर्श सहज होना चाहिए । मुद्राएँ पंद्रह- पंद्रह मिनट
सुबह -शाम की जा सकती  हैं ।
     मुद्राओं के अभ्यास से व्यक्तित्व का विकास होता है ।ज्ञानमुद्रा,प्राणमुद्रा,पृथ्वी मुद्रा,कोई भी साधक इच्छानुसार कर सकता है ।बाकी की मुद्राएँ विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार करनी चाहिये । यहाँ मैं कुछ प्रचलित मुद्राओं का विश्लेशण आवश्यक समझती हूँ ।

   
     
  
पृथ्वी मुद्रा-यह मुद्रा अंगूठे पर अनामिका की टोच लगाकार बाकी उँगलियोँ को सीधा रखने से बनती है । पृथ्वी तत्त्व की कमी से शारीरिक दुर्बलता को यह दूर करती है ।
आकाश मुद्रा-यह मुद्रा अंगूठे पर मध्यमा की टोच लगाकार बाकी की उँगलियों को सीधा रखने से बनती है । यह मुद्रा हड्डी संबंधी रोगों मे फायदेकारक है । मध्यमा का ह्रदय से संबंध होने से ,संबंधित रोग में फायदेकारक है ।
ज्ञान मुद्रा-यह मुद्रा अंगूठे पर तर्जनी की टोच यानी ऊपरी सिरा लगाकर बाकी कीउँगलियों को सीधा रखने से बनती है । यह मुद्रा मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं को क्रियावान बनाती है ।अनिद्रा रोग के लिए तो यह रामबाण है ।

Saturday 21 December 2013

योग क्यों?

हमारी सोसायटी की महिलाओं का एक समूह चर्चा कर रहा था योग की । सभी योग क्लास मे जाते थे और इसी विषय पर चर्चा हो रही थी ।सभी अपने-अपने अनुभव एक दूसरे के साथ बाँट रहे थे । मैं भी उनमें शामिल हो गई और उनसे पूछा- आप लोग योग के लिए क्यों जाते हो?  किसी ने कहा आज कल सब जाते है इसलिए मैं भी जाती हूँ , तो किसी ने कहा टाइम पास करने के लिए ।उनके द्वारा दिए गए जवाबों  ने मुझे सोचने को मजबूर कर दिया कि जिस कार्य के लिए ये लोग जाते हैं उसके फायदों से तो बिल्कुल अनभिज्ञ हैं। तो चलिए आज इसी विषय पर थोड़ी चर्चा करते हैं ।
    योगासन शरीर के सभी अंगों को  एकसाथ व्यायाम देते हैं  ।इसके तालबद्ध अभ्यास से शरीर के सभी अवयवों और ग्रन्थियों को कुदरती श्रम मिलता है और इनके आरोग्यवर्धक रस अधिक मात्रा में खून के साथ मिलते है जिससे शरीर तंदुरुस्त रहता है ।
      योगासनो के द्वारा मन की शांति मिलतीं है ।
      इनका नियमित अभ्यास से तन-मन की स्वस्थता व प्रसन्नता प्राप्त होती है और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है ।

Friday 20 December 2013

रिश्ते

ये रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं ।बचपन से लेकर अंत तक इंसान अलग -अलग रिश्तो से बँधा रहता है ।मेरे हिसाब से ये होतें हैं उडती पतंग की तरह । सबसे पहले तो इसके लिए मजबूत डोर की जरूरत पडती है और उसे मजबूत बनाने के लिए काँच का उपयोग किया जाता है ।और इसमें कितनी ही बार उँगलियों में घाव पड जाते है तब जाकर डोर पककी बनती है । ठीक इसी तरह हमारे रिश्ते होते हैं ।
  पतंग उडाने के लिए जितना महत्वपूर्ण उडाने वाला होता है उतना ही चकरी पकडने वाला भी होता है . अगर वह डोर को ठीक से नही लपेटेगा तो वह उलझ जाएगी और कितनी बार तो उसमें इतनी गाँठे पड जाती है कि उसे तोड ही देना पडता है । इसी तरह रिश्ते भी संभाल कर रखने पडते है  ।चाहे वो रिश्ता दोस्ती का हो,भाई-बहन का हो पति -पत्नी का हो या फिर कोई और ।कभीकभी नफरत, क्रोध ओर अहंकार रूपी माँझा  उसे काटने की कोशिश करते हैं  ।पर समझदारी और धैर्यपूर्वक चला जाए तो हम अपने रिश्तों की पतंग को दूर क्षितिज मे उडा सकते हैं ।
     आने वाले नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।

Sunday 8 December 2013

योग व रोग

हमारे शरीर में बाहर जितनी इन्द्रियाँकार्य करती हुई दिखाई देती हैं उससे अनेक गुना अधिक कार्य बाहर से न दिखाई देने वाली ग्रन्थियाँ करती हैं । जिनमें से एक मुख्य है थायरोइड । पिछले कई वर्षों में इसके विकारों से होने वाले रोगों की जानकारी मिली है ।
      यह ग्रंथि गले में तितली के आकार की होती है । हम जो भी खुराक लेते हैं उसमें से आयोडीन तत्व खून की सहायता से थायराइड ग्रंथि में पहुँचता है और इस आयोडीन में से थायराइड ग्रंथि टी३औरटी४ नामक हारमोंस बनाती  है । ये हारमोंस शरीर के अलग-अलग अवयवों में भ्रमण करते हैं और शरीर की चयापचय क्रिया को वेग देतें हैं और फिर इन सब अवयवों और उनके साथ जुडे हुए टिश्यु और मेटाबोलिज्म कार्यशील होते है । जब शरीर की मेटाबोलिक क्रियाएँ  ज्यादा काम करती हैं तो ये अंत:स्त्राव शरीर में कम होते हैं और तब इन क्रियाओ का संतुलन बनाएँ रखने का काम थायराइड ग्रंथि करती है ।
         जब यह ग्रंथि कम कार्य करती हैं तब उसे हाइपोथायराइडिज्म कहते हैं पर अगर ये अधिक काम करें तो हाइपरथाइरोडिजम  कहते है ।
  इस स्थिति मे सम्बन्धित व्यक्ति आलस का अनुभव करता है,शरीर पर,विशेषत:आँख के नीचे सूजन आ जाती है । वजन घटता-बढता रहता है । आवाज़ भारी हो जाती है किसी काम मे रूचि नही रहती यहाॅं तक व्यक्ति डीप्रेशन का शिकार भी हो जाता है । अगर ये सब लक्षण दिखाई दे तो तुरन्त जाँच करवानी चाहिए ।   
    योग द्वारा कुछ हद तक थायराइड ग्रन्थिकी विशिष्ट क्षमता को जाग्रत किया जा सकता है । इसमे सर्वांगासन ,मत्स्यासन,हलासन शवासन का अभ्यास करना चाहिए । प्राणायाम में भ्रामरी, ऊँकार तथा ऊजजयी का अभ्यास लाभदायक है ।
  साथ ही सूर्य मुद्रा के अभ्यास से थायराइड ग्रन्थि के पोइंट दबने से उसके स्रावो का संतुलन होता है ।

Thursday 5 December 2013

मेरे अनुभव

आज सुबह जब मै नाश्ता करने लगी तो खाते समय एक बाल न जाने कहाँ से आ गया और गले में फँस गया जब तक निकला नही तब तक भारी बैचेनी । खाया हुआ सब बाहर आ रहा था ,निकलने के बाद मैने चैन की साँस ली ।
     मेरे मन मेँ यही प्रश्न उठा इतने बडे शरीर मे इतना सा बाल सहन नही होता ।हमारे शरीर की यही प्रकृति है कि अनचाही चीज तुरंत बाहर धकेलता है  । छोटा सा काँटा चुभता है,वो जब तक निकल नहीं जाता ,हमें चैन नही पडता ।
    पर हमारे मन का क्या ? वो तो छोटी -बडी सभी बातों को  अपने  अंदर संग्रह करके रखता है .छोटी -छोटी बातोँ में क्रोध या दुख की भावनाओं को हमारा मन वर्षो तक सहेज कर रखता है और इस तरह हम जाने-अनजाने अपने स्वाथ्य को हानि पहुँचाते हैं । दुख और क्रोध की जो गाँठ हम बाँधते हैं उससे तरह -तरह की बिमारियों से ग्रसित हो जाते हैं।
       क्रोध हमारे मन को विकृत बना देता है ।
    हम अपने नकारात्मक विचारों से ,बिमारी अथवा बिगडे हुए संबंध से परेशान रहते हैं ।तो चलिये आज से ही शुरुआत करते है   । जो विचार हमने बरसों से पकड कर रखें हैं उन्हें छोडकर नई विचारधारा अपनाएँ ।हमारे जीवन में जो अशांति होती है वो हमारी स्वयं की मानसिक विचारधारा पर आधारित होती है तो हम अपनी विचारधारा की रीत बदले ,उन्हें सकारात्मकता की ओर ले चले  ।

Sunday 1 December 2013

मेरी सहेलियां

मै,खुशी,मुस्कान और हँसी बचपन की सहेलियां हैं । हमेशा साथ-साथ ।जाहिर है जहाँ खुशी है वहाँ हँसी और मुस्कान तो होंगे ही । इन दोनो के साथ बचपन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला । इस बीच एक नई सहेली से मुलाकात हुई जिसका नाम है चिंता । इतनी चिपकू है कि पीछा ही नही छोडती अकसर रात को आ धमकती है  और फिर सोने भी नही देती । इससे लाख बचना चाहो किसी न किसी बहाने से आ ही जाती है । इसके आते ही मेरी दोनो पुरानी सहेलियाँ तो भाग ही जाती हैं पर मै नही भाग पाती क्योंकि इसकी पकड़ जो इतनी मजबूत है । जब भी ये आती साथ अपने साथियो -सिरदर्द,डिप्रेशन आदि को लेकर ही आती है ।
  कल ही मैने अपनी पुरानी सहेलियों को याद किया तो वे बोली-जबतक ये चिंता है हम कैसे आएं । मैने भी निश्चय कर लिया कि इसे अब भगाना ही होगा ताकि मुझे अपनी पुरानी सहेलियाँ फिर से मिल सके और जीवन का सच्चा आनन्द मिले ।

Wednesday 27 November 2013

योग

आजकल हमारे देश में स्वास्थ्य के प्रति लोग जागरूक होते जा रहे हैं । मोर्निंगवॊक और योग का प्रचलन बढ गया है । खासकर बडी-बडी सोसाइटियों में योगा स्टेट्स का प्रतीक बनता जा रहा है । पर कया इस देखादेखी के चक्कर मे इसका पूरा लाभ प्राप्त होता भी है या नही ?
     कुछ लोगो के अनुसार "योग"कुछ कठिन आसान करना है कुछ लोग आसनो की संख्या पर जोर देते है । पर क्या इस तरह हम वास्तव में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते है ? मेरे हिसाब से योग का वास्तविक अर्थ है शरीर, दिमाग और मन का सच्चा तालमेल ।यह एक ऐसा विज्ञान है जिसके द्वारा हम अपनी आंतरिक शक्ति को प्रज्जवलित कर सकते हैं ।
         जीवन में छोटे-बड़े किसी भी कार्य को सहजता से करने के लिए हमारे शरीर व मन दोनो का स्वस्थ्य होना जरूरी है । योगासन के अभ्यास के द्वारा हम मन की शांति व स्वस्थ्य शरीर पा सकते है ।

Sunday 17 November 2013

मनोवृति

नवरात्री की समाप्ति के बाद मै घर की सफाई अभियान मे लगी हुई थी । रद्दी सामान का ढेर बढता जा रहा था ,सोच रही थी कि आज तो रद्दी वाला आए तो ये सब कबाडा साफ हो जाए फिर कल तो करवा चौथ भी है । तभी रद्दी वाले की आवाज़ सुनाई दी मै दौडकर उसे बुलाने गई और फिर जल्दी-जल्दी कबाड और अखबार वगैरह इकट्ठा करने लगी । रद्दीवाला एक-एक चीज को अलग करके देख रहा था मैने कहा - भैया सब देखा हुआ है तुम जल्दी से सब ले जाओ तो वह बोला बहन जी हमारा काम है सब चीजे अच्छी तरह देख कर ही लेते है । पर मुझे तो बड़ी जलदी थी । मेरे बहुत जोर देने पर वह सब लेकर हिसाब करके चला गया । मै भी अपने दूसरे काम में लग गई । लगभग एक घंटे बाद डोरबैल बजी  । मैने दरवाजा खोला तो पाया कि वही रददीवाला खडा था बोला बहनजीआपकी रददी के अंदर से ये निकला है कहते हुए उसने छोटा सा पाउच मेरी तरफ बढाते हुए कहा । मै तो देखकर सन्न रह गई इसमें तो मेरे सोने के कान के बुंदे थे जो मैने कल पहनने के लिए निकाले थे    जल्दबाजी मे मैने उन्हें भी देखें बिना दे दिया ।अपनी लापरवाही पर कोफ्त हो रही थी । पर उस रददी वाले की ईमानदारी पर गर्व हो रहा था जिसकी वजह से आज मुझे इतना बडा नुकसान होते-होते रह गया ।मैने उसे इनाम देना चाहा पर उसने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि ये तो मेरा फर्ज था ।

      उसी दिन की बात है करवा चौथ के दिन हम लोग मेहदी लगाते है । सोचा शौपिंग मौल के बाहर आजकल मेहदी लगाने वाले होते है वहीँ जाकर लगवा लेते है ।रात के दस बज चुके थे। वहाँ जाकर देखा तो लम्बी लाइन थी ।लगभग आधे घंटे के इंतजार के बाद हमारा नंबर आया साथ मे पोती और बहू भी थी । लगभग ग्यारह बजने को आए थे । घर पास ही था फिर भी हमनें सोचा औटोरिक्षा कर लिया जाए । बडी मुश्किल से एक औटो वाला रुका हम सोच रहे थे कि देखो कितना भला आदमी है । घर पँहुच कर मैने पूछा भैया कितने पैसे हुए  "।उसनें कहा "पैतालिस रुपये" हमनें सोचा रात का समय है ,कया बहस करें । मैने उसे सौ का नोट दिया तो वह बोला पाँच रूपये छुटटे दो । मैने कहा ठीक है आप बाकी के पैसे दो ।इसपर वह वही जोर-जोर से चिललाने लगा कि कौन से पैसे ?आपने तो मुझे पचास का ही नोट दिया था ।और वस मुझे ही झूठा ठहरा कर भाग गया ।मै  आशचर्य चकित सी उसे जाते हुए देख रही थी।
      दोनो घटनाएँ एक ही दिन की पर दोनों में कितना अंतर !यही तो है मानव की मनोवृति ।



Thursday 14 November 2013

सतरंगे सात चक्र

हमारे शरीर में सात चक्र स्थित हैं । जिन्हें संतुलित रख कर हम स्वस्थ्य शारीर पा सकते है । हमारे स्थूल शरीर में स्थित नही होने के कारण हम इन्हें देख नही सकते पर इनकी गति ,शक्ति व स्थिति का अनुभव जरूर कर सकते हैं। 

पहला चक्र है -मूलाधार चक्र जिसका रंग है लाल । ये हमारी किडनी,ब्लेडर और रीढ की हड्डी को नियंत्रित करता है । इसका सम्बन्ध पृथ्वी तत्व से होता है । इस मे असंतुलन होने से शरीर मे जडता आती है ,मन उदास व शरीर भारी लगता है ।

दूसरा चक्र है स्वाधिष्ठान चक्र-जिसका रंग है नारंगी । इसका संबंध गोनेड ग्रन्थी से है और कार्य क्षेत्र जातीयशक्ति व भावनाओं का केन्द्र है । इसका संबंध जल तत्व से है । 

तीसरा चक्र है -मणीपुर चक्र ।जिसका रंग है पीला ।इसका संबंध एडरीनल ग्रन्थी से है । ये पेट और लिवर को नियंत्रित करता है । इसका संबंध अग्नि तत्त्व से है । इसके असंतुलन से चर्म रोग ,मधुमेह और गैस आदि तकलीफ होती है । 

चौथा चक्र है अनाहत चक्र । जिसका रंग है हरा । इसका संबंध थायमस ग्रन्थी ,से है । ये हार्ट ,फेफडे व श्वसन प्रणाली को नियंत्रित करता है । इसका संबंध वायु ,तत्व से होता है । इसके असंतुलन से निराशा, डिप्रेशन आदि रोग होते हैं । 

पाँचवां चक्र है विशुद्ध चक्र । इसका रंग है हलका नीला ।इसका संबंध थायराइड ग्रन्थी से है ।ये गले व लंग्स को नियंत्रित करता है । इसका शक्ति स्त्रोत आभार अथवा दुख है ।इसका संबंध आकाश तत्व से होता है ।इसके असंतुलन से वात,पित्त और कफ की समस्या होती है । 

छठा चक्र है आज्ञा चक्र ।इसका रंग है गहरा नीला ।इसका संबंध पिटयूटरी ग्रन्थी से है ।यह ओटोनोमस नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करता है । इसका संबंध आकाश तत्व से है और शक्ति सत्रोत है जाग्रति अथवा क्रोध । 

सातवाँ चक्र हैं सहस्त्राकर चक्र । इसका रंग है जामुनी ।इसका संबंध पिनियल ग्रंथी से होता है ।यह सिर के उपरी भाग को नियंत्रित करता है । इसका कार्य क्षेत्र आधयात्मिक प्रगति करना है ।

इन चक्रों को संतुलन में रखने के लिए हम योग ,प्राणायाम ,और वैकल्पिक हीलिंग प्रणाली का उपयोग कर सकते हैं ।

Wednesday 13 November 2013

बाल दिवस

आज बाल दिवस है यानि चाचा नेहरु का जनम दिन । बचपन मे निबन्ध रटते थे कि उन्हें बच्चों से बहुत  प्यार था इसलिए उनका जनमदिन बालदिवस के रूप मे मनाया जाता है ।तब हमारे लिए बाल दिवस का मतलब  नये कपडे पहन कर ,स्कूल जाना और पढाई से छुट्टी होता था कयोकि पूरे दिन बाल मेला व सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते थे  ।
           आज भी स्कूलोँ मे बालदिवस मनाते है । और आज भी इस दिन बच्चे खूब मजा करते है । पर हमें यही अपने कर्तव्य की इतिश्री नही मान लेनी चाहिए ।आज के बच्चे कल का भविष्य हैं उन्हें अच्छी शिक्षा व संस्कार देना है ।अघिकतर देखा गया है कि  बच्चों को पढाते या सिखाते समय नकारात्मक सीख दी जाती है जैसे -ये मत करो ,या फिर उधर मत जाओ । इसकी जगह अगर हम ये कहें कि ये काम करो देखो कितना अच्छा है ,इधर आओ  तो उनपर सकारात्मक असर होगा और आगे जाकर उनका उत्तम विकास होगा ।
                                    
 

Tuesday 12 November 2013

विदाई

मिलते हैं जो बिछडते भी हैं वो,
       बिछडता है दिन साँझ से जैसे मिलकर ।
   आज मिलते हैं दोस्त, कल जुदा होते हैं,
    है दस्तूर ये ही इस नश्वर जहाँ का।
      तो फिर कयों ?ये तेरा ,ये मेरा
        वो ऐसा ,वो वैसा,
          यही राग गाते हैं ।
      अरे,आज हैं कया भरोसा है कल का,
    पता है सभी को है जाना तो इक दिन,
    फिर कैसा ये झगड़ा, ये नफरत ये हिंसा,
     इसलिए ही तो ये कहना है मेरा,
      सदा मुसकुराओ ,सदा गुनगुनाओ ।

Monday 11 November 2013

अखंड सौभाग्य

अखंड सौभाग्यवती रहो -रमा को दादी की आवाज सुनाई दी। यह तो उनके घर का रोज का क्रम था ,जब भी माँ पूजा करके माँ के पैर छूती दादी उन्हें रोज यही आशीष देती । तब रमा को इसका मतलब पता नहीँ था क्योंकि वह बहुत छोटी थी ,लेकिन उसके बालमन पर यह अंकित हो चुका था कि ये सबसे अच्छा आशीर्वाद है कारण रमा की दादी भी उसकी माँ से बहुत स्नेह रखती थी । उसके पिताजी भी हर काम माँ की सलाह से ही करते थे । कुल मिलाकार उनका परिवार एक खुशहाल परिवार था ।  समय का चक्र चलता रहा ,आज रमा की शादी है ,वह खुश है आज उसे भी वही आशीर्वाद मिल रहा है। रमा विदा होकर ससुराल आ गई है । ससुराल का वातावरण जरा भिन्न है पति उग्र स्वभाव के है । वह ससुराल में हमेशा सबको खुश रखने की कोशिश करती रहती । इस बीच वह दो संतानों की माँ बन चुकी है ।समय  गुजरता रहा
उसके पति अब रिटायर हो चुके हैं ,बच्चे पढ-लिख कर स्थाई हो चुके हैं । पति का स्वभाव उग्र से उग्रतर होता जा रहा है । अब वह मन ही मन सोचती कि उसके बाद कौन इनका ध्यान रखेगा ? रमा अब मजबूर थी  । हे ईश्वर उसकी इतने सालों की प्रार्थना को मत सुनना ।

Sunday 27 October 2013

माँ का पत्र बेटी के नाम

प्यारी बिटिया,                                             

आज तेरा पहला कविता संग्रह छपा हैं । सब तरफ से बधाई के फोन आ रहे हैं, मैं तो मारे गर्व के जैसे आसमान में उडी जा रही हूँ ।इस सफलता के लिए तुझे ढेरों आशीर्वाद ,ईश्वर करे तू सफलता की एक-एक सीढ़ी इसी तरह चढती रहे । मै जानती हूँ ये सफलता तुझे ऐसे ही नहीं मिली ये तो तेरी मेहनत व अपने आप में दृढ विश्वास था जो तू आज इस मुकाम पर पहुँच गई । मुझे आज भी याद है कैसे तू बचपन में छोटी-छोटी कविताएँ लिखकर मुझे सुनाती थी और फिर एक छोटे से बक्से में उन्हें संभाल कर रखती थी मै भी मन ही मन सोचती थी कि तू बडी होकर इस क्षेत्र में बड़ा नाम कमाएगी पर मन के किसी कोने में शंका थी कि अगर सफल न हो पाई तो? इसीलिये मैने तुझे उच्च शिक्षा के लिए बाहर भेज दिया । तुझे याद है जब एकबार बाढ का पानी हमारे घर में घुस गया था और तेरा कविताओं वाला बक्सा पानी से भर गया था तब तू कितना रोई थी । तब भी मै तेरे साहित्य प्रेम को न समझ पाई ,पर अब समझ आ रहा है कि तेरे लिये वो कितनी कीमती होगी । बेटा,हो सके तो अपनी माँ को माफ कर देना ,जो तेरी रुचि और मन की भावनाओं को समझ न सकी । एक माँ होकर भी तेरे अंदर छुपी प्रतिभा को न पहचान सकी ।
                                                   
                                               तेरी माँ

Thursday 24 October 2013

नन्ही चिड़िया

नन्ही चिड़िया पंख पसारे,
       उड़ना चाहे आसमान में,
        दूर-दूर तक क्षितिज के,
          इस छोर से उस छोर तक  ।
    ममता कहती,ओ चिड़िया मेरी नन्ही
       अभी तू है छोटी सी ,नाजुक सी,
        ये दुनिया है जालिम बड़ी,
       रहो अभी तुम आँचल की छाँव में मेरी,      
आ जाए जब ताकत इतनी
          पंखों में तुम्हारे कि, उड पाओ एकल
                 गिद्धों से बचकर,
             तब तुम उडना दूर-दूर तक ,                 
और पहुँचना मंजिल तक ।
     

Tuesday 22 October 2013

सात सुरों का जादू

संगीत जीवन का आनंद है । इसे सुनने से हमें असीम आनंद व शांति की अनुभूति होती है  ।ं
  मधुर संगीत से मन को अलग ही सुकून मिलता है। मनोरंजन के साथ-साथ इसका उपयोग रोगों के इलाज के लिए भी किया जाता है ।
      तनाव दूर करने में तो ये रामबाण सिद्ध हुआ है ,वैसे भी अधिकतर रोगों का कारण मानसिक तनाव होता है इसलिए जब भी मानसिक या शारीरिक तनाव हो अपना पसंदीदा संगीत सुनना चाहिये इससे हमारी माँसपेशियाँ रिलेक्सिंग मोड  में चली जाती है । संगीत असहनीय दर्द को सहने की क्षमता बढाता है साथ ही साथ गाने से स्मरणशक्ति भी बढती है  । बुढ़ापे के अकेलेपन को दूर करने में भी ये सहायक हैं ।
  संगीत है तो जीवन में रस है मधुरता है।
       

Wednesday 16 October 2013

स्वस्थ्य ह्रदय

    आज  29 सितम्बर को विश्व हार्ट दिवस मनाया जाता है। अरे दिल तो रोज धडकता है,अपना काम निरंतर करता रहता है लेकिन ये जो दिवस मनाए जाते हैं वो हमें सतर्क करने के लिए होते है कि हम अपने स्वास्थ्य के प्रति कितने जागरूक हैं । स्वस्थ्य हृदय वही है जो खुश रहता है। अपने आप को स्वस्थ्य रखने के लिए हम कसरत करते हैं और अच्छी खुराक भी लेते हैं पर हमारी मानसिक स्वस्थता भी हमारे दिल को स्वस्थ रखने की कुंजी है। इस विषय में शोध के आँकड़ों से पता चलता हैं कि सकारात्मक विचारों वाले व्यक्ति ही अधिक स्वस्थ्य पाए जाते हैं । जब भी कोई वस्तु हमें अच्छी लगती हैं ,तब हमारे मुँह से बरबस यही निकलता है-"वाह दिल खुश हो गया "।तो बस आप भी सीख ले अपने दिल को खुश रखना बस सदा मुसकराते रहे ।थोडा समय अपने ,सिर्फ अपने लिए निकाल कर पसंदीदा कार्य करें ।शेष अपने आप ठीक हो जाएगा।

Tuesday 15 October 2013

लाजो की माँ

सुधा पति व बच्चों को ओफिस और स्कूल भेजकर सोच ही रहीथी कि चलो आराम से बैठकर एक कप चाय पी जाए ,तभी डोरबैल बजी उसने सोचा इस समय कौन हो सकता हैं ? उसने दरवाजा खोला तो एक महिला को खडी पाया ।सुथा उसे पहचानने का प्रयत्न कर रही थी सुंदर सी साड़ी बहुत ही सलीके से पहनी गई थी। वह मुसकुरा कर उसे देख रही थी ,तभी वह बोली-पहचाना नही दीदी । उसकी आवाज़ को पहचानते हुए सुधा के मुँह से निकला अरे लाजो की माँ ! सुधा तो अभी भी आश्चर्य में डूबी खड़ी थी । लगभगर पंद्रह साल पुरानी बात होगी,लाजो की माँ सुधा के घर काम करती थी तब वह पांच साल की लाजो को साथ लेकर आती थी और उससे छोटा मोटा काम भी करवाती थी । तब सुधा उसे समझती के तू लाजो को पढ़ा लिखा तो लाजो की माँ कहती कहाँ से स्कूल भेजूँ दीदी,ये स्कूल जाएगी तो काम मे मेरी मदद कौन करेगा? फिर पैसे भी कहाँ से लाऊँगी? तब सुधा ने उसे समझाया कि सरकारी विघालयों में तो लडकियों के लिए मुफत शिक्षण व्यवस्था है और फिर उसके थोडे से प्रोत्साहन से लाजो स्कूल जाने लगी । सुधा भी समय निकाल कर उसे पढाने लगी और उसने पाया कि लाजो की पढाई मे काफी रुचि थी । वह समय-समयफ पर उनकी आर्थिक सहायता भी करती थी। धीरे -धीरे समय बीतता गया और फिर कुछ सालों के बाद लाजो की माँ से सुधा का सम्पर्क टूट गया और आज इतने सालो बाद लाजो की माँ का बदला रूप देखकर वह बहुत खुश थी। लाजो की माँ कह रही थी-दीदी आपके आशीर्वाद से लाजो आज शिक्षिका बन गई है आपने ही मुझे सही राह दिखाई वरना आज मेरी बेटी भी मेरी तरह बरतन कपड़ा साफ कर रही होती । सुधा ने कहा-मैने तो बस राह दिखाई थी ये तो तेरी और लाजो की मेहनत का नतीजा है। लाजो की माँ की आँखों से खुशी के आँसू बह रहे थे । सुधा के चेहरे पर संतोष था।

Friday 11 October 2013

प्यारी बिटिया

वो नन्हे कदमों से ठुमक ठुम चलना,
    वो हँसना किलक कर गलेबाँह धरना,
    वो सोना लिपटकर सुनकर नन्ही परी,
      याद आता है,आता बहुत याद मुझको ।
   वो मिसरी सी धोले है कानों में,
      मेरे हां...मम्मा,
      वो प्यारी सी मुस्कान,वो मीठी सी हँसी,
      कभी गुस्सा होना, कभी समझाना कुछ,
        बहुत ही दुलारी है,बिटिया हमारी,
         परी नन्ही मेरी है,जादू की पुड़िया।

Tuesday 8 October 2013

सकारात्मक सोच और स्वास्थ्य

सकारात्मक सोच का हमारे स्वास्थय पर गहरा असर होता है। सामान्य व्यक्ति मे रोज़ लगभग साठ हजार विचार आते है यानि कि प्रत्येक सेकेंड में एक विचार । ये विचार प्रेमभरे या फिर नफरत भरे हो सकते है, जिनका सीधा संबध ह्र्दय से होता है । दूसरे वो जिनका सम्बन्ध दिमाग से होता है जैसे घर या ओफिस का काम । जब हम अपने विचारों को कार्यान्वित नहीं कर पाते तब तनाव का अनुभव करते हैं और इसका सीधा असर हमारो श्वसन प्रणाली पर होता है और शरीर में स्थित चक्रों की गति में अवरोध उत्पन्न हो जाता है तथा शरीर को पोषण देने वाले पाँच तत्व असंतुलित हो जाते हैं और हमारा शरीर समबन्धित बिमारी से ग्रस्त हो जाता है।  इसलिए अगर हम अपने विचारों के प्रति सकारात्मक रुख अपनाएं तो हम एक स्वस्थ्य जीवन पा सकते है। साथ ही नियमित ध्यान व योग के नित्य अभ्यास से अपने विचारो की संख्या को नियंत्रित कर सकते है ।