वो कहते हैं कि
  नहीं बेहतर 
दोस्त कोई 
   मुझ जैसा 
जिसने भी की 
  दोस्ती मुझसे 
   वो हमेशा 
    सुख पाया 
    अरे नहीं पहचाना?
     मैं हूँ  किताब 
     पर आजकल 
     हो गई हूँ जरा
     एकाकी 
      लोगों को हो गया है 
      जरा कम मुझसे लगाव 
       पड़ी रहती हूँ 
     रैक पर , उपेक्षित सी 
       क्योकि आजकल
     मेरी जगह है 
     इंटरनेट, टीवी 
      कुछ लोग सिर्फ 
     दिखावे के लिए 
     सजाते है मुझे 
     कुछ लोग 
     बेच डालते है 
     रद्दी में 
   मुझ में संचित 
    ज्ञान के बदले
    कुछ पैसे पाकर 
     खुश हो लेते 
     थोडा इत्मिनान है 
   कुछ लोग तो हैं 
   अभी भी 
   जिन्हें है मेरी क़द्र 
    जो चाहते है 
    अभी भी मेरा साथ 
    चलो इसी बात से 
    मैं खुश हूँ 
    मैं हूँ किताब .........
    
Saturday, 23 April 2016
किताबें
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मुझे फिर से स्कूल का बस्ता थामा दो न "माँ",
ReplyDeleteमुझे ज़िन्दगी का सबक बहुत मुश्किल लगता है ।
धन्यवाद राजेशजी ।
Deleteधन्यवाद राजेशजी ।
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति। पुस्तकों का हमारे जीवन में अधिक महत्व हैं। अकेलेपन में पुस्तकें हमारे जीवन में मित्र का काम करती हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद हिमकरजी
Deleteधन्यवाद हिमकरजी
Deleteसुंदर रचना के साथ सुंदर अभिव्यक्ति। हमारे जीवन में पुस्तकों का क्या महत्व हैै, इसे आपने बखूबी समझाया है। पर भारत मैं अधिकांशत: लोग पुस्तकें पढ़ने में रूचि नहीं लेते। कम से कम उन्हें इस मामले में अंग्रेजों से जरूर सीखना चाहिए।
ReplyDeleteस्वागत् है आपका मेरे ब्लॉग पर । बहुत -बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteस्वागत् है आपका मेरे ब्लॉग पर । बहुत -बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुंदर एवं सामायिक रचना .......
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