Sunday 2 January 2022

लघुकथा ..पदचिह्न

नन्ही रानी अपने छोटे-छोटे कदमों से घर में इधर-उधर दौड रही थी । कभी गुडिया लेने एक कमरे से दूसरे में भागती तो कभी दूसरा खिलौना ।
  उसकी माँ घर की सफाई कर ,पोछा लगा रही थी ।
रानी ....."एक जगह बैठ नहीं सकती ,देख नहीं रही पोछा लग रहा है सब जगह पगले (पैरों के निशान )हो जाएगें ।पता नहीं कब अक्ल आएगी।उसकी दादी नें डाँटते हुए कहा ।
 नन्ही रानी सहम कर एक जगह बैठ गई ।
   तभी दादी जोर जोर से गाने लगी ...पगला नो पाडनार देजे रे भवानी माँ ( अर्थात पुत्र देना हे माँ ,जो पूरे घर में पदचिह्न करे )
रानी नें अपनी माँ की ओर देखा .....उसकी आँखें आँसुओं से भरी थी ।
 
    शुभा मेहता 
  2nd January , 2022

31 comments:

  1. प्रिय शुभा जी, थोड़े शब्दों में ही आपने हमारे समाज की दीपक तले अंधेरा वाली कड़वी सच्चाई को सामने रखा है बेटियों को प्राय इसी तरह के भेदभावपूर्ण रवैए का सामना करना पड़ता है। खासकर दादी मांओं की कुंठा शायद इसलिए भी बच्चियों पर निकलती है कि उन्होंने लड़की होने की पीड़ा को खूब अनुभव किया है। सार्थक और मार्मिक लघु कहानी के लिए बधाई।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय सखी रेणु । आपकी सुंदर प्रतिक्रिया पढकर मन खुश हो गया ।

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  2. बहुत ही प्रासंगिक, सार्थक, सामयिक, मर्म को छूती, सत्यस्पर्शी और संवेदना को झकझोरती लघुकथा।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद विश्व मोहन जी ।

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  3. बहुत ही सराहनीय लघुकथा प्रिय शुभा दी जी शब्द नहीं है समीक्षा हेतु।
    समाज में व्याप्त ये रुड़िया...।
    मन भिगो गया आपका सृजन।
    नववर्ष की आपको बहुत सारी बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएँ।
    सादर नमस्कार

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आलोक जी ।

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  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (4-1-22) को "शिक्षा का सही अर्थ तो समझना होगा हमें"(चर्चा अंक 4299)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय सखी कामिनी जी ,मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने हेतु ।

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    2. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय सखी कामिनी जी ,मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने हेतु ।

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  6. बहुत बहुत बधाई आपको और हार्दिक शुभकामनाएं।कथा और नववर्ष दोनो के लिए

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  7. बहुत ही सार्थक एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा।

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  8. बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी ।

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  9. कम शब्दों में समाज की कड़वी सच्चाई व्यक्त की अपने, शुभा दी।

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    1. धन्यवाद ज्योति ।

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  10. बहुत ही सुन्दर लेखन

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  11. अच्छी प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद ओंकार जी ।

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  12. यही दोगलापन कचोटता है और तब और भी टीस उठती है मन में जब इसके पीछे का कारण भी एक औरत होती है

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कविता जी ।

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  13. समाज के कड़वे सत्य को बयां करती बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शि लघुकथा!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद मनीषा जी ।

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  14. सार्थक अभिव्यक्ति....बहुत खूब 👍

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  15. बढ़िया प्रस्तुति

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  16. समाज या कहें परिवार का दोहरा रवैया ऐसे दर्द भरे दृश्य आज भी हमें दिखा जाता है, सामाजिक रूढ़ियों, मनुष्य के दोहरे चरित्र को दर्शाती । चिंतनपूर्ण लघुकथा, बहुत शुभकनाएँ आपको

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  17. पुरुष सत्तात्मक मानसिकता पर चोट करती लघु कहानी।
    सकारत्मक सृजन हेतू साधुवाद शुभा जी।

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  18. आज भी पुत्र की चाहत में बड़े लोग ऐसी ही बातें कर देते हैं जो नन्हे मन पर विपरीत प्रभाव डालती हैं ।
    सुंदर लघु कथा ।
    देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी ।

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  19. आपकी लिखी कोई रचना सोमवार. 31 जनवरी 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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