सपने जो देखे थे
एक साथ हमने
पूरा करने की
होड़ में , साथ
धीरे -धीरे जैसे
छूटता सा गया
जिन्हें , पाने की
चाह में जीवन जैसे
रीत सा गया
आज ये , कल वो
कब होंगे पूरे ये
अब तो जैसे
बन गये हैं हम -तुम
एक नदी के दो किनारे
साथ तो चलते हैं
मगर कितनी दूर
और ये ,
कभी न ख़त्म होने वाले सपने
या कहो -इच्छाएँ
चलो अब बहुत हुआ ....
साथ मिलकर डुबकी लगाएं
आ जाये भँवर में
पकड़ हाथ एक -दूजे का
एक किनारे लग जाये ।
आ जाये भँवर में
ReplyDeleteपकड़ हाथ एक -दूजे का
एक किनारे लग जाये ।
कमाल की अभिव्यक्ति है.... बहुत खूब!
धन्यवाद संजयजी ।
Deleteधन्यवाद संजयजी ।
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