Thursday, 14 January 2016

सपने....

  सपने जो देखे थे
     एक साथ हमने
     पूरा करने की
       होड़ में , साथ
       धीरे -धीरे जैसे
       छूटता सा गया
       जिन्हें , पाने की
      चाह में जीवन जैसे
       रीत सा गया
      आज ये , कल वो
     कब होंगे पूरे ये
      अब तो जैसे
     बन गये हैं हम -तुम  
     एक नदी के दो किनारे
     साथ तो चलते हैं
    मगर कितनी दूर
     और ये ,
     कभी न ख़त्म होने वाले सपने
    या कहो -इच्छाएँ
     चलो अब बहुत हुआ ....
     साथ मिलकर डुबकी लगाएं
     आ जाये भँवर में
      पकड़ हाथ एक -दूजे का
      एक किनारे लग जाये ।
     

3 comments:

  1. आ जाये भँवर में
    पकड़ हाथ एक -दूजे का
    एक किनारे लग जाये ।

    कमाल की अभिव्यक्ति है.... बहुत खूब!

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    Replies
    1. धन्यवाद संजयजी ।

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    2. धन्यवाद संजयजी ।

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