देखो बसंत - बहार में
अवनि ने धरा रूप नया
बन गई हरा समन्दर
इठलाती , बलखाती
ओढ़ छतरी गगन की
झुलाती पल्लू बसन्ती
हँसती गुनगुनाती
पल्लू पर ओस बूँदों नें जैसे
टांक दिए हों हीरे मोती
हुई अलंकृत फूल सरसों से
है इसकी तो छटा निराली
कोयल गाती पंचम सुर में
फूल-फूल पर डोलें भँवरे
तितलियाँ भी सजी रंगों से
उड़ती -फिरती लगती प्यारी
प्रकृति ने जैसे खोल दिया हो
जादुई पिटारा बाँटने को रूप
हर फूल , कली को
नदी ,समंदर को
खेतों को खलियानों को
मन करता है
भूल सभी कुछ
नाचें , गाएं ख़ुशी मनाएं ।
Saturday, 23 January 2016
बसंत -बहार
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आपकी लिखी रचना, "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 25 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद । मेरी रचना को "पाँच लिंकों का आनंद में शामिल करने के लिए । आभार ।
ReplyDeletebeautifully expressed..:)
ReplyDeleteThanks sanjay ji
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteमनमोहक भाव.... बहुत सुंदर
ReplyDeleteAtyant manohari wah
ReplyDeleteBhut sunder .
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