Friday, 8 January 2016

फुटपाथी

    सर्द ठिठुरती रात में
       एक चादर भी
     मयस्सर नहीं जिन्हें
     कुछ चिथड़े से लपेटे हुए
      देखा है कई बार इन्हें
      सर्द हवा के झोंकों से
      बचने की नाकाम कोशिश
        करते हुए....
      ना कोई ठौर ना ठिकाना
     फुटपाथ हीं इनका बसेरा है
      देखा है छोटे -छोटे बच्चों को
      टूटे-फूटे खिलौनों से
       खेलते हुए और
       सिगनल पर
      नए खिलौने बेचते हुए
      सर्द हवा से बचने के लिए
     जुगाड़ करते है
      कुछ लकड़ी के टुकड़े
      अलाव जलाने को
     नींद आती है लेकिन
     सो नहीं पाते
      इस डर से कि
     कहीं कोई तेजी से
     आती हुई कार
      कुचल न डाले उन्हें
     इसलिए जागते है रात भर
     उनके लिए तो ,उनकी ज़िन्दगी है
      अनमोल ....
     औरों के लिए हो ना हो
     जी हाँ ....ये हैं फुटपाथी ।
    
      

8 comments:

  1. पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ..और बहुत ही अच्छी रचना पढने को मिली.
    आभार शुभा जी.

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  2. स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर ।

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  4. अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं

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  5. बहुत -बहुत धन्यवाद संजय जी ।

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  6. बहुत -बहुत धन्यवाद संजय जी ।

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  7. बहुत खूब शुभा जी ,देखा है,छोटे-छोटे बच्चों को टूटे खिलौनो से खेलेते हुए और सिग्नल पर नये खिलौने बेचते हुए 😢

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  8. बहुत सुंदर या अभीव्यक्ति।

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