उदास मन ,उदास तन
चारों ओर उदासी
न है कोई आसपास अपना
न समय किसी के पास
कोई तो पूछे
मेरे दिल का हाल
माँ -पापा... बस काम ही काम
हाँ लाकर जरूर दिए हैंं
ढेरों खिलौने
पर खेलूँ किसके साथ
कितने सारे गेजेट्स ..
उन्हें क्या मालूम
कितना हूँ अकेला
बस चाहत है
कुछ पल तो रहें
वो मेरे साथ
क्या करूँ..?
कोई दवा है
जो दे दे खुशी
या उदासी को ही गले लगाऊँ
या फिर खो जाऊँ सपनों मेंं
या फिर नाचूँ ,गाऊँ
अकेले मेंं चुपके से कह लूँ
नहीं है प्यार मुझसे किसी को
या फिर इस उदासी को
घोल के पी जाऊँ शरबत में ....।
शुभा मेहता..
सटीक रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
DeleteBahut badhiya aaj ka baccha sach mein khud ko akela mahsoos krta hai uski parvarish ya toh crèche mein ya dhhai k dwara aur agar kismat acchi rhi toh apne dadi dada dwara bahut kam hota h jab use apne maa baap ka saath mike yatharth darshaya hai vedna aur samvedna dono hi sath sath chlte hain uttam rachna ke liye tujhe badhai khush rah deerghjeevi ho dher saara pyaar apni srijankriya ko sur paina kar 😘😘😘😘😘😘😘😊😊😊😊😊😊
ReplyDeleteअकेलापन नहीं दूर होता ...
ReplyDeleteकिसी अपने की ही जरूरत है ... बहुत सटीक रचना ...
बहुत बहुत धन्यवाद दिगंबर जी ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ५ मार्च २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी ।
Deleteसुंंदर और सार्थक रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद पम्मी जी ।
Deleteआदरणीय शुभा जी ---बचपन की उदासी को बखूबी शब्द दिए आपने | बचपन में अकेलापन एक श्राप जैसा है जो आजीवन अवसाद को जन्म देता है | सादर
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद रेनू जी ।
Deleteसुंंदर और सार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद नीतू जी ।
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