अरे ओ चित्रकार
कौन है तू ,कभी देखा नहीं
रहता है कहाँ तू ?
कैसे भरता है रंग इस जगत में
कहाँ से लाता है इतने ?
ये हरे भरे पर्वत ,ये नदियाँ ,ये झरनें
ये पेड़ पौधे फलों से लदे
हैं जो लाल,पीले ,नीले रंगों से सजे ।
क्या तू है वही जिसे ,हमनें है बैठाया
मंदिर ,मस्जिद ,चर्च और गुरुद्वारे में
तूने तो बांटे हैं सभी को
रंग एक जैसे
फिर क्यों कोई करता है
तेरे बनाये इस
सतरंगी जहाँ को मटमैला
भर के रंग हिंसा का
नफरत का
द्वेष का
अरे तू आता क्यों नहीं
बचाने अपनी सुंदर
सतरंगी दुनियाँ को ।