वो बस्ता लेकर भागना
    सखी -सहेलियों से
     कानाफूसियाँ
   भाग -दौड में 
    चप्पल टूटना
     टूटी चप्पल जोडना
     नाश्ते के डब्बे
     कपडों पर स्याही के धब्बे
     माँ से छुपाना
     ओक लगाकर पानी पीना
     खेल की छुट्टी में
      बेतहाशा दौडना
      घुटनों को तोडना
       कपडों की बाँह से
      पसीना पोंछना
     किरायेकी साइकल   
    के लिए लडना -झगडना
    छुपन-छुपाई गिल्ली -डंडा
    सितौलिया , भागम भाग
     न ट्यूशन का टेंशन
   न पहला नंबर ही लाने का झंझट
कितना प्यारा था मेरा बचपन
       अब इस आधुनिकता की  
    दौड में कहाँ खो गया ये सब 
   आज के बच्चों का तो 
     जैसे छिन सा गया बचपन ।
                          शुभा मेहता
                      18th October 2016
 
लिखती रहें । शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद ।
Deleteबहुत -बहुत धन्यवाद ।
Deleteसच लिखा है ... अब नेट का जमाना है ... बसते के बोझ का ज़माना है ... वो बात कहाँ .... अच्छी रचना है ...
ReplyDeleteस्वागत है आपका मेरे ब्लोग पर । बहुत -बहुत धन्यवाद ।
Deleteस्वागत है आपका मेरे ब्लोग पर । बहुत -बहुत धन्यवाद ।
Deleteकितना प्यारा था मेरा बचपन
ReplyDeleteअब इस आधुनिकता की
दौड में कहाँ खो गया ये सब
आज के बच्चों का तो
जैसे छिन सा गया बचपन ।
...हमें भी यही लगता है
बचपन बहुत पीछे छूट गया है ...
स्वागत है आपका मेरे ब्लोग पर। बहुत -बहुत आभारी हूँ ।
Deleteस्वागत है आपका मेरे ब्लोग पर। बहुत -बहुत आभारी हूँ ।
Deleteमैं स्कूल में टिकना ही नहीं चाहती थी
ReplyDeleteपढ़ना नहीं सीखती जो तो आपका प्यारा लेखन कैसे पढ़ती मैं
बहुत -बहुत धन्यवाद विभा जी ।सही कहा आपने , पढना तो जरूरी है ।
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